SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिरङ्ग ( smooth ) मिलता है। इस प्रसर अवस्था के साथ फिरंगार्बुदिकाएँ भी मिल सकती हैं। __ अण्वीक्षीय चित्र सक्रिय व्रणशोथ को न प्रकट करके विकास के अवसाद ( arrest of development ) को प्रकट करता है अर्थात् फुफ्फुस के वायुकोशा या तो बिल्कुल ही नहीं बन पाते या उनका थोड़ा भाव बनकर रह जाता है। जहाँ वे पूर्णतया रह जाते हैं वहाँ भी उनका आकार प्रकृत से छोटा देखा जाता है। वायुकोशा (alveoli ) में श्लेष्मलग्रन्थियों का सा घनाकार अधिच्छद बिछा होता है। वायु कोशाओं के बीच बीच में तथा श्वासनलिका तथा रक्तवाहिनियों के चारों ओर कोशीय तान्तव ऊति बहुत बड़े परिमाण में छाई रहती है। यह ऊति सीधी फुफ्फुस की मध्य स्तरकृत अति ( mesoblastic tissue ) से निकलती है। कहीं कहीं वायुकोशाओं का पूर्ण विकास हुआ मिलता है और उनमें पैनस और अन्तश्छदीयकोशा भी देखे जाते हैं। अवाप्त फिरंग का निदान न तो सजीवावस्था में ही ठीक प्रकार से होता है और न मृत्यूत्तर परीक्षा ही उसकी पुष्टि कर पाती है इसी कारण निश्चितरूप से यह कहना कि इन लक्षणों से युक्त यह फुफ्फुस फिरंग का चित्र है बहुत कठिन है। कुछ लोग फुफ्फुस फिरंग बहुत कम होने वाला रोग है ऐसा कहते हैं । फुफ्फुसफिरंग के २ रूप मिल सकते हैं:१. श्वासनाल का व्राणन ( ulceration of a bronchus) २. फुफ्फुस का फिरंगार्बुद श्वासनालीय वणन तत्पश्चात् व्रणवस्तुनिर्माण और उसके अनन्तर निरोधोत्कर्ष होना यह सब श्वसनयन्त्रीय फिरंग के बहिरन्तर्भव प्रकार से बहुत सादृश्य रखता है। जब फिरंग की सक्रियावस्था चल रही हो तब किसी धमनी का अपरदन होने के कारण अत्यधिक रक्तष्ठीवन देखा जा सकता है। श्लेष्मलकला में व्रणवस्तु बनने के कारण उसकी आकृति रस्सी से बनी नसेनी ( rope ladder ) से मिलती जुलती हो जाती है। श्वासनलिका में निरोधोत्कर्ष होने के कारण फुफ्फुस का एकाधिक या एक खण्ड अवपतित हो जा सकता है। फुफ्फुस के फिरंगाबुद लघु आपीत धूसर ग्रन्थिकाओं जैसे होते हैं जो सम्पूर्ण फुफ्फुस में फैले रहते हैं । इनमें किलाटीयन हो सकता है पर गुहानिर्माण या कूपीयन ( cavitation ) जैसा कि यक्ष्मा में मिलता है कदापि नहीं होता। यह दशा फिरंगिक महाधमनीपाक के साथ साथ होती है या उसके उपरान्त देखी जाती है। अण्वीक्ष चित्र वैसा ही रहता है जैसा सहज फिरंग में। रक्तवाहिनियों में धमन्यन्तश्छदपाक देखा जाता है। सुकुन्तलाणु बड़ी कठिनता से दिखाई देते हैं। फिरंग के सुकुन्तलाणुओं के धोखे में कभी कभी फुफ्फुस ऊति के विनाश के कारण उत्पन्न गलशोफकुन्तलाणु (spirochaeta vincenti) पाये जा सकते हैं अतः दोनों को ठीक से देखना और समझना चाहिए। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy