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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिरङ्ग अस्थिवक्रता तो हो सकती है क्योंकि फिरंगिक स्थौल्य का वितरण विषम होता है और अस्थि को वक्र कर सकता है। बड़ी बड़ी धमनियों में फिरंग के कारण एक प्रकार की व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया होने लगती है। यह प्रतिक्रिया उनमें दो स्थानों पर देखी जाती है जिनमें एक धमनीय वाहिनियों ( vasa vasorum ) की परिवाहिनीय लसवहाओं में और दूसरी धमनी के अन्तःस्तर में मिलती है। परिवाहिनीय लसवहाओं में लसीकोशाओं और प्ररसकोशाओं की भरमर हो जाने से परिवाहिनीय मणिबन्ध Kperivascular cuffing ) बन जाता है तथा अन्तःस्तर में प्रतिक्रिया होने के कारण अभिलोपी धमन्यन्तश्छदपाक होता रहता है यहाँ तक कि धमनी का सुषिरक पूर्णतः बन्द हो जाता है। बड़ी धमनी में धमनीय वाहिनी जहाँ जहाँ होकर जाती है उसके अनुसार धमनी के मध्यस्तर में एक सिध्मिक व्रणशोथ उत्पन्न हो जाता है वहाँ एक क्षुद्र फिरंगार्बुद भी बन जा सकता है इन सब का परिणाम यह होता है कि इस स्तर के प्रत्यस्थ और पेशीसूत्र बदल कर तन्तूत्कर्ष हो जाता है। इसके कारण मध्यम स्तर के वर्तुल पेशीसूत्र खण्डित हो जाते हैं जिसके कारण धमनीप्राचीर में एक दौर्बल्य उत्पन्न हो जाता है। उसका कारण यह है कि जो तन्तूत्कर्ष होता है उस पर जब रक्त के पीडन का प्रभाव होता है तो इन सूत्रों में लचकीलेपन का अभाव होने के कारण वे खिंच जाते हैं और सिराज ग्रन्थियों ( aneurysms ) को जन्म देते हैं। महाधमनी में इस परिवर्तन को फिरंगरोग में बहुधा देखा जाता है और यह कहा जाता है कि महाधमनीस्थ सम्पूर्ण सिराज ग्रन्थियों का हेतु फिरंग ही है । धमनी के अन्तश्छद में कोशाओं का प्रक्षोभात्मक प्रगुणन होने लगता है। परन्तु यतः इनके सुषिरक बड़े होते हैं इसलिए वे इतने नहीं सिकुड़ पाते कि कोई गम्भीर अवस्था उत्पन्न होवे । चुद्ध धमनियों में जिनमें धमनीय वाहिनियाँ होती नहीं वहाँ वाहिनियों में सिराज ग्रन्थियाँ नहीं बनतीं वहाँ तो घनास्रोत्कर्ष होता है क्योंकि अभिलोपी अन्तर्धमनीपाक ( obliterative endarteritis) उसका कारण होता है। इसी कारण प्रमस्तिष्कीय घनोस्रोत्कर्ष फिरंग में बहुधा देखा जाता है। घनास्रोत्कर्ष होने के उपरान्त मस्तिष्क के उस भाग का मृद्वन ( softening) तथा तरलीय जतिनाश ( liquefactive necrosis ) होने लगता है। फिरंगार्बुद क्या है ? फिरंगार्बुद को अंग्रेजी में गम्मा या गम्मैटा कहते हैं जिसका अर्थ गोंद होने के कारण इसे कुछ विद्वान् गोंदाबंद भी कह देते हैं। हमने फिरंग के कारण उत्पन्न इस उत्सेध विशेष को चाहे वह गोंद के सदृश हो या न हो फिरंगाबूंद कहना ही अधिक युक्तियुक्त समझा है और तदनुसार उसका प्रयोग किया है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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