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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ विकृतिविज्ञान उद्देश्य से पश्चिम की ओर होकर चला और अमेरिका की खोज करने में सफल हुआ तब इस नव जगत् के प्राणियों से यह भेंट प्राप्त हुई जिसे हम फिरंग कहते हैं । सन् १४९३ ई. में लौटने से पूर्व हेटी द्वीप की स्त्रियों के साथ कोलम्बस के निषादों ने सम्भोग किया तो उनसे यह रोग उन्हें प्राप्त हुआ। हेटी में यह रोग कैसे और कब आया इसे भगवान् ही जाने पर नये जगत् की खोज के एक उपहार के रूप में ही सभ्य जगत् इसे मानता है। उन निषादों ने इटली की स्त्रियों को भ्रष्ट करके इस रोग को वहाँ पहुँचाया। वहां से फ्रांस होता हुआ यह रोग सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त हो गया। 'मातृवत् परदारेषु' की संस्कृति का पाठ यदि उन खोजप्रिय युवकों ने पढ़ लिया होता तो यह रोग कभी का अपनी मौत हेटी में ही मर जाता जैसे कि हेटी के आदि. वासी यूरोपीय समाज के "आत्मवत् सर्वभूतेषु' के पाठ को न जानने के कारण मर गये और अपनी सभ्यता तक को न छोड़ गये और हमें इतने पृष्ठ लिखने के लिए बाध्य न होना पड़ता। अपनी संस्कृति की कमी होने से वेश्यागमन की प्रवृत्ति बढ़ती गई जिसे हमारी परतन्त्रता ने और भी पुष्ट किया और भारतीय व्यक्तित्व ने कामान्ध बन अपने परम पवित्र, उज्ज्वल भविष्य और परमोच्च अतीत वाले भव्य देश में इस पाप व्याधि को प्रसारित कर दिया। शौडिन और हौफमैन ने सन् १९०५ ई. में इस रोग के कर्ता जीवाणु का पता लगाया था जिस पर बोर्ड तथा वाशरमैन ने अपनी महत्त्वपूर्ण खोजों को १९०७ में प्रकाशित किया था। __ यह एक औपसर्गिक रोग है और प्रायः फिरंग से पीडित स्त्री के साथ सम्भोग करने से उत्पन्न होता है । इसी की पुष्टि करते हुए भावमिश्र लिखते हैं गन्धरोगः फिरंगोऽयं जायते देहिनां ध्रुवम् । फिरंगिणोङ्गसंसर्गात् फिर ङ्गिण्याः प्रसंगतः ।। व्याधिरागन्तुजो ह्यष दोषाणामत्र संक्रमः । भवेत् , तल्लक्षयेत् तेषां लक्षणैर्मिषजां वरः॥ कि 'फिरंग रोग गन्धरोग है गन्ध से फैलने वाला या उड़कर लगने वाला रोग है। यह प्राणियों में फिरंगी व्यक्ति के संस्पर्शन से अथवा फिरंगपीडित स्त्रियों के सम्भोग के कारण फैलता है। यह एक भागन्तुज व्याधि है जिसमें दोषों का अनुबन्ध पीछे से होता है इसलिए वैद्यों को दोषों का विचार करके लक्षणानुसार चिकित्सा करनी चाहिए।' ___ कहना नहीं होगा कि इन दो तीन वाक्यों में फिरंग के सम्पूर्ण आधुनिक विचारों को भावमिश्र ने रख दिया है। फिरंग न केवल मैथुन से अपि तु फिरंगी के अंगस्पर्श मात्र से भी हो सकता है, जैसा कि शल्यचिकित्सकों में देखा जासकता है। इस रोग का मुख्य और गौण हेतु है एक जीवाणु या चक्राणु जो डाट खोलने के पेच की तरह पेचदार होता है। इसे स्पाइरोकीटा पैलिडा या देपोनीमा पैलिडा कहते हैं । जीवाणु के पेचों ( spirals) को कुन्तल कहा जाता है उसी आधार पर इसका नाम फिरंग सुकुन्तलाणु है जिसे हम समय-समय पर प्रयोग करेंगे। एक फिरंग सुकुन्तलाणु में ६ से लेकर १५ तक तीक्ष्ण कुन्तल होते हैं। सब प्रकार के For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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