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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ विकृतिविज्ञान किलाटीय पुंज बन जाते हैं जो ग्रन्थिकीय ऊति का सर्वनाश करके शीत विद्रधि उत्पन्न कर देते हैं जो त्वचा पर फूट जाती है। इसमें तन्तूत्कर्ष खूब मिलता है। प्रत्यक्ष उपसर्ग स्तन के नीचे की किसी पर्शका की पर्यस्थि में स्थित यक्ष्मविक्षत द्वारा होता है। इसके कारण पश्चस्तनीय विद्रधि ( retromammary abscess ) बनती है जो स्तन के नीचे से स्तन में प्रवेश करती है। पर्शका में यक्ष्मविक्षत किसी यक्ष्मोपसृष्ट कशेरुका से बहकर आये हुए यमपूय द्वारा बना करता है। यदि यच्मोपसृष्ट स्तन के दुग्ध का पान कोई शिशु करता है तो निस्सन्देह उसे यह रोग लग सकता है। __इस रोग के कारण कक्षागतलसग्रन्थियाँ बढ़ जाती हैं और उनमें किलाटीयन होने लगता है । स्तन में तन्तूत्कर्ष अधिक होने के कारण स्तन चर्म से तथा भीतर की ऊतियों से संलग्न हो जाता है। इस चित्र को देखकर कौन उसे स्तनकर्कट से पृथक कर सकता है ? कभी-कभी यक्ष्मा और कर्कट दोनों ही स्तन में साथ-साथ होते हैं। . (११) वातनाडीसंस्थान पर यक्ष्मा का प्रभाव जब शरीर में किसी अंग में यक्ष्म नाभि उपस्थित हो तो यह असामान्य नहीं है कि मस्तिष्क में स्थानसीमित यक्ष्मिकाएँ या यक्ष्मार्बुदिकाएँ ( tuberculomata) न मिलें। ये अर्बदिका अनेक होती हैं और इनका आकार मटर से लेकर एक कुक्कुटाण्ड के बराबर तक देखा जा सकता है। वे गोल, तान्तव, प्रावरित अर्बुदिकाएँ होती हैं जिनके भीतर किलाटीय या चूर्णिय ( calcareous) पदार्थ भरा हुआ रहता है । ये अर्बुदिकाएँ मस्तिष्काधार ( base of the brain ) पर दिखाई दिया करती हैं। वे बालकों में अधिक मिलती हैं। उनके धमिल्लक (निमस्तिष्क) और उष्णीषक बहुत प्रभावित होते हैं। जब ये मस्तिष्क की गहराई में होते हैं तब तो उतनी दिक्कत नहीं होती पर यदि वे उपरिष्ठ भाग में ही रहे तो उनके समीपस्थित मस्तिष्कछद प्रभावित हो जाती हैं जिसके कारण उसमें अनेक श्यामाकसम यदिमकाएँ हो जाती हैं और वह स्थूलित हो जाती है। ___ यदि मस्तिष्क पर शस्त्रकर्म करते समय ये अर्बुदिकाएँ दिखाई दें और उनको दूर करने का यत्न किया जावे तो यचममस्तिष्कछदपाक हो सकता है जो अतीव घातक स्वरूप की विपत्ति होती है और जिसका कि वर्णन नीचे दिया जारहा है । यक्ष्ममस्तिष्कछदपाक ___ यक्ष्ममस्तिष्कछदपाक ( tuberculous meningitis) एक रक्त धारा से मस्तिष्क तक लाया गया उपसर्ग होता है। यह यक्ष्ममध्यकर्णपाक के द्वारा भी हो सकता है या करोटि के भीतर अन्य यक्ष्मनामि के कारण भी देखा जा सकता है। इस मस्तिष्कछदपाक का कर्ता मानवीय यक्ष्मकवकवेत्राणु होता है जो दो तिहाई For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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