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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ विकृतिविज्ञान पदार्थ को लेकर चलती है तो उसके द्वारा सम्पूर्ण फुफ्फुस को या उसके एक भाग को तीन फुफ्फुस श्यामाकसम यक्ष्मा (acute pulmonary miliary tuberculosis) का शिकार बनना पड़ता है । जब किलाटीय पदार्थ (caseous matter) फुफ्फुसीया सिरा ( pulmonary vein) में चला जाता है तो उसके द्वारा यक्ष्मा अस्थियों, सन्धियों, मूत्रप्रजननसंस्थान तक चली जाती है। उससे सर्वाङ्गिक श्यामाकसम यक्ष्मा उत्पन्न हो सकती है तथा यचम मस्तिष्कछदपाक ( tuberculcus meningitis) भी हो सकती है। ___ यद्यपि आन्त्रदण्डाणु की तरह यचमकवकवेत्राणु रक्त में संवर्धित नहीं होता, परन्तु रक्त की धारा उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर उठाये फिरती है जिसके कारण एक स्थानिक या सर्वाङ्गीण यक्ष्मविक्षत देखने को मिला करते हैं। रक्त में यक्ष्मदण्डाणु किसी विक्षत द्वारा न आकर सीधे किसी लसवहा द्वारा भी पहुँच सकते हैं। वह लसवहा मुख्या लसकुल्या ( thoracic duct ) में खुले और मुख्या लसकुल्या रक्त में खुलती है। कभी-कभी मुख्या लसकुल्या स्वयं भी यक्ष्मा पीडित देखी जाती है। ऊतियों के द्वारा भी यचमादण्डाणु का प्रवेश हो सकता है। ऊतियों की समीपता ( contiguity ) तथा अविच्छिन्नता ( continuity ) भी यक्ष्मप्रसार में सहायक होती हैं । उदरच्छद और फुफ्फुसच्छद ये दोनों कलाएँ क्रमशः आन्त्र तथा फुफ्फुस के समीप होती हैं इस कारण जब आन्त्र या फुफ्फुस में यक्ष्मा का विक्षत होता है तो उसका प्रभाव इन समीपस्थ कलाओं पर पड़ता है और इनमें व्रणशोथ और यक्ष्मविक्षत बन जाते हैं। यदि एक क्लोम शाखा ( bronchus ) में यक्ष्म विक्षत हो तो ऊति की अविच्छिन्नता के कारण उसका प्रभाव दूसरी क्लोमशाखा पर भी पड़ सकता है । खाँसते समय एक क्लोमशाखा का किलाटीय पदार्थ दूसरे में गिर कर दूसरे स्वस्थ फुफ्फुस को भी उपसृष्ट कर सकता है। इस प्रकार यच्मप्रवेश के लिए उपरोक्त ६ मार्ग उत्तरदायी होते हैं जिनके नाम पुनः सुखस्मरणार्थ नीचे दिये जाते हैं १-श्वसनमार्ग ( by inhalation ) २-मुखमार्ग ( by ingestion ) ३-आदिबलप्रवृत्ति ( by heredititly transmission) ४-अन्तर्रोपण ( by inoculalion ) ५-रक्तधारा ( through blood stream ) ६-ऊतियों की समीपता और अविच्छिन्नता (through continuity & contiguity of tissues ) उपरोक्त ६ मार्गों में से श्वसनमार्ग द्वारा मानवीय यमकवकवेत्राणु और मुखमार्ग द्वारा गव्यकवकवेत्राणु प्रवेश करते हैं तथा इन्हीं दोनों प्रकारों के अन्तर्गत सम्पूर्ण ही यक्ष्म प्रकरण आ जाता है। हमारे देश में मानवीयकवकवेत्राणु ही प्रमुखतया For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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