SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यक्ष्मा ४६६ और नेत्रों के लिए हितावह होता है : क्योंकि सूर्यरश्मियों के कारण पशु में जीवति कघ ( vitamins A & D) पर्याप्त बढ़ती हैं जिनमें क का नेत्रों पर शुभ प्रभाव देखा जाता है। प्रायः प्राभातिक क्षीरं गुरुविष्टम्भिशीतलम् । रात्र्याः सोमगुणत्वाच्च व्यायामाभावतस्तथा । दिवाकराभितप्तानां व्यायामानिलसेवनात् । वातानुलोमि श्रान्तिघ्नं चक्षुष्यं चापराह्निकम् ॥ (च. सू. अ. ४५) मल-मूत्र-मल-मूत्र के द्वारा भी यक्ष्मा का प्रसार हो सकता है। आन्त्रक्षय या बस्तिक्षय होने पर मल अथवा मूत्र औपसर्गिक यक्ष्मा दण्डाणुओं से युक्त हो जाया करते हैं। नयज विद्रधियों के स्रावों में भी यह दण्डाणु खूब पाया जाता है। इसके फलस्वरूप जो परिचारिका या शल्यकर्मी इस मल से भरे व्रणों को धोता है या इस नाव को ले जाता है वह भी इस रोग का शिकार हो सकता है। मांस-यक्ष्मा से पीडित पशुओं के मांस द्वारा भी इस रोग का प्रसार हो सकता है। यहाँ मांस स्वतः तो यक्ष्मा से पीडित होता नहीं पर इसमें उपस्थित लसीका ग्रन्थियों में इसके दण्डाणु उपस्थित रहते हैं जो मांस के साथ साथ जाकर रोग का कारण बन सकते हैं। कभी कभी मांस के अन्दर स्थित क्षयज विधि के स्राव से यह सन जाता है और उपसर्ग का प्रसार करने में समर्थ हो जाता है। परिपक्क मांस से दण्डाणु बिदा हो जाते हैं पर जो कच्चे मांस का रस पीते हैं या उसे यों ही खाना चाहते हैं वे इसके दूषित होने से यक्ष्मा के चंगुल में फंस सकते हैं। माता-माता यदि क्षय से पीडित है तो उसके रक्त द्वारा गर्भस्थ शिशु को भी यक्ष्मा हो सकती है। इसी कारण मनुस्मृति में मनु ने जिन दशकुलों में विवाह करने का निषेध किया है उनमें यच्मा से पीडित कुल भी है : ........... दशैतानि कुलानि परिवर्जयेत् । हीनक्रियं निष्पुरुषं निश्छन्दो रोमशार्शसम् । क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठिकुलानि च ॥ जब स्तन में यक्ष्मा हो जाती है तो स्त्री का दुग्ध उससे दूषित हो जाता है उस दूषित दुग्ध को जब बच्चा चूसता या जब भयग्रस्त स्तन को मुख में लेता है तो उसे तब भी यक्ष्मा का उपसर्ग लग सकता है। यक्ष्मा के प्रवेशमार्ग यक्ष्मा के दण्डाणुओं का शरीर में प्रवेश जिन जिन मार्गों से हो सकता है उसका अब विचार करना आवश्यक है। यक्ष्मा दण्डाणुओं के प्रवेश के २ प्रसिद्ध मार्ग हैं। एक श्वसन (inhalation) और दूसरा मुखद्वारा (by ingestion)। 'यच्मा का मानवी प्रकार (यमकवकवेत्राणु) प्रायः श्वसन द्वारा फैलता है। यक्ष्मा का सूखा हुआ बलगम जब धूल में मिल जाता है और उस धूल को कोई स्वस्थ पुरुष सूंघ जाता है तो उसको यक्ष्मा लग जाता है ( कोर्नेट)। फ्लुगे का कथन है कि जब तक ष्टीव के कण आर्द्रावस्था में रहते हैं तभी तक यक्ष्मा दण्डाणुओं का उपसर्ग हो सकता है For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy