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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकृतिविज्ञान करना बहुत ही कठिन था। पूर्वरूपों का इतना साम्य विविध विषाणुजनित रोगों को उत्पन्न कर देता है। इन रोगों की उग्रता का विचार करके आधुनिक चिकित्सक इनके प्रतिरोध पर जितना ध्यान देकर टीका या मसूरीकरण की व्यवस्था करते हैं वह सर्वथा उपयुक्त है। . खाद्य अथवा पेय पदार्थों के दूषित होने पर जब उनका किसी व्यक्ति के द्वारा ग्रहण हो जाता है तो उससे पचनसंस्थान दूषित होकर अनेक रोगों की उत्पत्ति करना सम्भव हो जाता है। इस प्रकार से आन्त्रिक ज्वर, संग्रहणी, साल्मोना जनित रोग, आन्त्रिकक्षय, क्षयज लसग्रन्थियाँ, अस्थिक्षय, सन्धिक्षय, विसूचिका, ब्रुसेलोसिस आदि उत्पन्न होते हैं । इनसे बचने के लिए शुद्ध खाद्य पेयों की ओर ध्यान देना परमावश्यक है। प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा जो खाद्यपेयादि के सकरानिखरादि व्यवस्थाएँ बनाई गई हैं वे इन रोगों से मानव की रक्षा की दृष्टि से हैं जिन्हें अनेक साधारण बुद्धि वाले या अविकसित ज्ञानवाले ढोंग कह कर छोड़ देते हैं। अँगरेज और अमेरिकन ये स्वप्न देखने लगे हैं कि खान-पान की वस्तुओं में पूर्ण शुद्धि का प्रचार करके बाजारों में उनकी खपत और कारखानों में उनकी उत्पत्ति का विचार और नियन्त्रण लगाकर वे निःसन्देह पचनसंस्थानजन्य, व्याधियों से मुक्ति पा सकते हैं। पर चिरकालीन वाहकों की कृपा से बड़े-बड़े सम्मेलनों और मेलों में पचनसंस्थान के रोगों की महा. मारियाँ होती रहती हैं जिनके कारण सहस्रों प्राणियों का संहार आये वर्ष हो जाया करता है। पचनसंस्थान के उपसर्गों से पीडित ५ प्रतिशत से अधिक रोगी चिरकालीन वाहक ( carriers ) बन जाया करते हैं। ___स्पर्श द्वारा फैलने वाले रोगों के जीवाणु मानवत्वचा या श्लेष्मलकला के साथ अपना रिश्ता जोड़ लेते हैं। इस तरह से विसर्प, वातालिका या प्लेग, लैप्टोस्पाइरोसिस, फिरंग, मलेरिया, एंथ्राक्स, टिटेनस (धनुर्वात ) और टायफस आदि रोग बनते हैं। मशक अथवा पिस्सुओं के विनाश से मलेरिया तथा प्लेग से पाश्चात्य देशों को पर्याप्त छुटकारा मिल चुका है पर भातरवर्ष जैसे देश में सम्पूर्ण राष्ट्र की आय का होम कर देने पर भी मशक संहारपूर्ण नहीं हो सकता। __ मैक्स्वीनी' नामक विद्वान् का कथन है कि केवल शरीर और रोगकारी जीवाणु इन दोनों के सम्मेलन का परिणाम रोग नहीं है अपि तु रोगोत्पत्ति के लिए एक तीसरा 1. There is one feature comected with infection which deserves to be emphasized. For many years it has been taught that Infection was the result of bringing together a pathogenic agent ( bacillus, coccus. spirochaete, virus ) with a susceptible victim. It is becoming increasingly clear that a 3rd factor is generally required if a clinical reaction is to be provoked by this meeting of missile with target. This 3rd factor is trauma, often physical (e.g. in meningitis a fall on the head, in poleomyelitis excessive exercise) but sometimes psychological (e. g. worry about domestic, business or financial affairs, our study for examinations etc. ), For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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