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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर ४२५ ३ मुखशोष ३ अङ्गमद ४ तालुशोष ५ प्रमीलक ४ प्रमीलक ६ आध्मान ५ आध्मान ६ तन्द्रा ८ अरुचि ७ अरुचि ९ श्वास ८ श्वास १०कास ९ कास ११ भ्रम १० भ्रम १२ श्रम ११ श्रम तीनों ने तृष्णा नामक लक्षण को माना है। शेष चरकोक्त लक्षण दोनों को मान्य नहीं। भालुकि और भावमिश्र ने अङ्गमर्द और मद इनकी क्रमशः भिन्नता रखते हुए शेष ग्यारह-ग्यारह लक्षणों में समता रखी है। ऐसा लगता है कि भ्रम शिरःशूल, दाह और गौरव को प्रकृतिसमसमवायलक्षण मान कर नहीं दिया गया शेष लक्षण महत्वपूर्ण होने के कारण बतलाये गये हैं। वातकफोल्बण सन्निपात भालुकि ने इसे मकरी माना है परन्तु भावमिश्र ने इसे शीघ्रकारि संज्ञा से सम्बोधित किया है । इसके सम्बन्ध की तालिका निम्न है:चरक भावमिश्र १ शैत्य २ कास ३ अरुचि ४ तन्द्रा १ तन्द्रा ५ पिपासा २ पिपासा ६दाह २ उदरदाह ७ रुग्व्यथा x ८ हृव्यथा ३ शीतज्वर ३ शीतज्वर ४ निद्रा ५ क्षुधा ४ दुधा ६ पार्श्वनिग्रह ५ पार्श्वनिग्रह ७ शिरोगौरव ८ आलस्य ९ मन्यास्तम्भ भालुकि x xxx -X पिपासा xxx xxx For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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