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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ विकृतिविज्ञान x ३ हृल्लास ४ दाह ५ वमि ६ अरति ३ हृद्ग्रह ४ दाह ५ छर्दि x x xx x x ७ भ्रम x x x x x x x x ८ तन्द्रा ६ तन्द्रा ९कास ७ शीतज्वर ८ निद्रा १ रात्री निद्रा ९ गौरव ५० मूर्छा ११ तृष्णा १२ तृप्ति १३ ष्टीवन १४ मुखमाधुर्य २ मुखमाधुर्य १५ श्रोत्रनिग्रह १६ वानिग्रह ३ गद्गदवाणी १७ दृष्टिनिग्रह ४ प्रस्तब्धनेत्रता ५ जाड्य इस सन्निपात में भावमिश्र ने चरकोक्त एक भी लक्षण नहीं पढ़ा उनके पढ़ने की आवश्यकता भी नहीं क्योंकि प्रकृतिसमसमवायरोगलक्षण ग्रन्थकार बहुधा गिनाते नहीं । पर भालुकि ने अरति भ्रम और कास को छोड़ ६ लक्षण चरक के देते हुए ११ लक्षण अलग दिये हैं। जिनमें ४ लक्षण भावमिश्र से मिलते हैं। भावमिश्र ने जाड्य नामक लक्षण स्वतन्त्रतया दिया है । तीनों का लक्ष्य यहाँ भी एक है। वातपित्तोल्बण सन्निपात इसे भावप्रकाश में बभ्रु या बभ्र कहा जाता है। भालुकि ने इसे विभ्रु नाम दिया है । इसके लक्षणों की तालिका नीचे दी जाती है:चरक भालुकि भावमिश्र १ भ्रम २ तृष्णा १ तृष्णा ३ दाह ४ गौरव ५ शिरःशूल २ ज्वर १ तृष्णा xxx २ज्वर For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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