SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २ ] चतुर्थ अध्याय विहास [ Degeneration ] २३६-२५७ मेघाभ या मेघसम शोथ-२३६, स्नैहिक विह्रास -२३८, हृदय का स्नैहिक विह्रास-२४३, यकृत् का स्नैहिक विह्रास-२४३, मांसपेशी का स्नैहिक विह्रास-२४४, वृक्कों का स्नैहिक विह्रास-२४५, अन्य स्नैहिक परिवर्तन-२४५, मधुजनीय अन्तराभरण-२४६, फानगीर्क रोग-२४६, श्लेषाभ विह्रास-२४७, काचर विह्रास-२४७, मण्डाभ विह्रास-२४९, प्लीहा का मण्डाभ विह्रास-२५१, वृक्कों का मण्डाभ विह्रास-२५२, यकृत् का मण्डाभ विह्रास-२५३, महास्रोतस् का मण्डाभ विह्रास-२५४, मण्डाभ विह्रास के परिणाम-२५४, धमनीविह्रास-२५५, चूर्णीयन-२५५, अश्मरियाँ-२५७ । पञ्चम अध्याय रक्तपरिवहन की विकृतियाँ २५८-२८५ [ Pathological disorders of blood circulation ] विशोणता-२५८, कोथ-२५९, घनास्रता या घनास्रोत्कर्ष-२६३, अन्तःशल्यता-२६८, ऋणास्रप्रदेश-२७४, अतिरक्तता या परमरक्तता-२७८ । षष्ठ अध्याय पुनर्निर्माण [ Repair ] २८५-३०१ प्रथम रोपण-२८७, कणन द्वारा रोपण-२८९, पुनर्जनन द्वारा रोपण-२९३, अस्थिरोपण-२९५, रोपण में प्रतिरोपण का महत्त्व-२९८, अतिघटन-३००। सप्तम अध्याय ज्वर [ Fever ] ३०२-४६२ ज्वरसम्प्राप्ति-३०३, ज्वर का पूर्वरूप-३०८, ज्वर की संख्यासम्प्राप्ति-३१५, एकरूप ज्वर-३१५, द्विविध ज्वर-३१६, पञ्चविध ज्वर-३२३, प्रलेपक ज्वर-३३३, सप्तविध ज्वर-३४३, अष्टविध ज्वर-३५४, वातज्वर-३५५, पित्तज्वर-३७१, कफज्वर-३८६, वातपित्तज्वर-४०७, वातकफज्र-४११, श्लेष्मपित्तज्वर-४१३, सन्निपातज्वर-४१६, आगन्तु ज्वर-४५२, अष्टविध ज्वरसम्प्राप्ति-४५४, ज्वर के सम्बन्ध में आधुनिक विचार-४५४, अविरामज्वर-४६०, दण्डकज्वर-४६७, मरुमक्षिकाज्वर-४६८, For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy