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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रक्त परिवहन की विकृतियाँ २८३ के समान हो जाती है । यह गोल, फूली हुई, कठिन और रंग में गहरी लाल देखी जाती है । अण्वीक्ष में देखने से इसमें लालकर्णी की बहुत अधिक भरमार मिलती है । इसका तन्तुमय सन्धार ( fibrous stroma ) बढ़ जाता है। साथ ही लसिकाभ धातु (lymphoid tissue ) की अपुष्टि हो जाती है । फुफ्फुसों की अतिरक्तता -- इसका दूसरा नाम बभ्रु काठिन्य ( brown induration ) भी है । यह बहुत काल से प्रचलित रक्ताभरण के कारण हुए विशेष तनाव और रञ्जन के कारण उत्पन्न होता है । द्विदलीय सन्निरोध का यह प्रमुख परिणाम है । सबसे पहले फौफ्फुसिक धमनियों में अत्यधिक रक्त आने से वे मोटी और वक्र ( tortuous ) हो जाती हैं। उनसे आगे वायु कोश ( alveoli ) में रक्त भर जाता है जिससे वहाँ बृहत् कन्यष्टिसितकोशा ( large mononuclear ) तथा बभ्रु वर्ण की उपस्थिति बढ़ जाती है । इन कोशाओं को हृद्भेदकर कोशा ( heart failure cells ) भी कहते हैं । उनका रंगद्रव्य शोणायसि ( haemosiderin ) होता है । ये कोशा रंगद्रव्य को श्वसनिकाओं से निकाल कर अन्तरावकाशिक धातु ( interstitial tissue ) के लाभ सिध्मों ( lymphoid patches ) में एकत्र कर देते हैं । इसी रंगद्रव्य के कारण सारा यकृत् कपिश दिखाई देता है । इन परिवर्तनों के कारण अन्तरोपखण्डीय ( inter lobular ) संयोजी ऊति की वृद्धि होती है तथा वायु कोशाओं की प्राचीर मोटी पड़ जाती है, श्वासनलिकाओं की श्लैष्मिक कला गहरी हो जाती है और उसकी वाहिनियाँ भी विस्फारित हो जाती हैं । कभी कभी वे फट भी जाती हैं और रक्तष्ठीवन ( haemoptysis ) का कारण बनती हैं। कभी कभी ये परिवर्तन फुफ्फुस में ऋणास्त्र बन जाने के पश्चात् भी देखे जाते हैं । जिन स्थलों पर फुफ्फुसों का वर्ण बभ्रु ( कपिश ) होता है वहाँ वे अधिक भारी, अधिक सघन, अधिक कठिन ( tough ) और अल्पस्वनी ( less crepitent ) मिलते हैं । उनके आधारों में अधःस्थानीय रक्ताभरण ( hypostatic congestion ) मिलता है जो हृदय की दुर्बलता और पीठ के बल बराबर लेटे रहने के कारण होता है । आधार भागों में रक्त के रुके रहने से वहाँ के वायुकोषाओं में निर्यातित तरल भर जाता है और ऊति में उपसर्ग - शीलता उत्पन्न हो जाती है । इसके परिणाम स्वरूप अधः स्थित फुफ्फुसपाक (hypostatic pneumonia ) भी मिलता है । वह एक हलका प्रशोथीय सघनीभवन है जो हृदयातिपात के साथ रोगियों की मृत्यु का एक प्रधान कारण है । स्थानिक निश्चेष्ट रक्ताभरण ( Local passive congestion ) जब किसी स्थान से सिरागत रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है तो वहाँ स्थानिक रक्ताभरण देखा जाता है । इसका प्रमुख उदाहरण आन्त्र है । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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