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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रक्तपरिवहन की विकृतियाँ २७५ ऋणास्त्र-प्रदेश युक्त अङ्ग का यदि कुछ भाग शरीर के बाह्य धरातल पर प्रगट होता हो तो त्वचा में रक्ताधिक्य होकर कुछ भाग विवर्ण हो जावेगा। यह एक महत्त्वपूर्ण नैदानिक चिह्न है। फुफ्फुस के ऋणास्रों में, थूक में तथा वृक्कों के ऋणास्रों में, मूत्र में रक्त की उपस्थिति देखी जाती है। ऊपर जो वर्णन दिया गया है वह ऋणास्रों की प्रारम्भिक अवस्था का है। इस अवस्था के बीतने पर वर्ण के अनुसार दो प्रकार के ऋणात्र देखे जाते हैं-एक लाल और दूसरा श्वेत । लाल ऋणास्त्र ( Red Infarcts ) जिस अङ्ग में धमनी द्वारा रक्त का अभिसिञ्चन धमनी जालक्रियादि के कारण स्वतन्त्रतापूर्वक हो सकता है वहाँ प्रायः लाल ऋणास्र देखा जाता है। यकृत् , फुफ्फुस तथा आन्त्र ऐसे ही अङ्ग हैं । यह ऋणास्र की प्रारम्भिक अवस्था के साथ ही जुड़े रहते हैं। क्योंकि ऋणास्त्र-प्रदेश में पीड़न की कमी रहती है अतः वहाँ चारों ओर से रक्त आने का प्रयत्न करता है। छोटे छोटे लाल ऋणास्र-प्रदेशों में रक्त इतना अधिक नहीं आता कि वह भाग पूर्णतः भर जावे बल्कि वहाँ तो थोड़े समय के भीतर सामपार्श्विक संवहन ( collateral circulation ) प्रारम्भ होकर उपशम ( resolution ) का कार्य प्रारम्भ हो जाता है और आघातप्राप्त धातु पूर्ववत् अपना कार्य ज्यों का त्यों करने लगती है। इसी से जहाँ स्वतन्त्ररूप से धमनी जालकरण ( arterial anastomosis ) होता है वहाँ केवल धमनी के अवरोध के तात्कालिक लक्षणों के अतिरिक्त कोई विशेष लक्षण नहीं देखे जाते । लाल ऋणास्त्र-प्रदेश में लाली का कारण रक्त के लालकणों का ऊति में भाग कर पहुँचना होता है। रक्त के अवरोध से जारक की कमी हो जाने से केशिकाओं की अन्तश्छद दुर्बल होकर नष्ट हो जाती है जिसके कारण उनमें भरा हुआ रक्त उतियों में जाकर उन्हें लाल रंग देता है। यह धमनी का ही रक्त होता है। ____ यदि आघातप्राप्त क्षेत्र विस्तृत हो तो सामपार्श्विक धमनी संवहन से दूरतम स्थित स्थान में रक्तरस के स्राव से रक्त की जालक्रिया हो जाती है। अतः लाल ऋणास्र का केन्द्रिय भाग गहरा काला तथा लाल और कठिन होता है। जब आतंचन हो जाता है तो फिर वहाँ से जलीयांश का इतने द्रुतवेग से नाश होता है कि वहाँ शोणांशन ( haemolysis) नहीं हो पाता। इन परिस्थितियों में भीतरी अतियाँ मर जाती हैं और उन पर एक लाल वलय का निर्माण हो जाता है। यदि रोगी जीवित रहा तो इनके अन्दर भी श्वेत ऋणास्रों की तरह परिवर्तन होते हैं। जिनका वर्णन नीचे किया गया है। श्वेत ऋणास्त्र ( White Infarcts ) । जो अंग एकमात्र धमनी ( end artery ) से अभिसिञ्चित होते हैं और जहाँ अन्य किसी धमनी या उसकी शाखा से रक्त नहीं पहुंच सकता वहाँ श्वेत ऋणास्त्र देखा जाता है। मस्तिष्क, प्लीहा, वृक्क और कुछ कुछ हृदय में भी ये देखे जाते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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