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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६४ विकृतिविज्ञान रक्तधारा द्वारा अन्दर ही अन्दर पहुँचता है तो सीधा अन्तः सिरापाक (endophlebitis ) ही देखी जाती है। इन सब में किसी न किसी प्रकार अन्तश्छद का विनाश होकर घनास्रोत्पत्ति होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आन्त्रिकज्वर ( typhoid fever ) का दण्डाणु घनास्रन में बहुत पटु है । उसके कारण और्वी ( femoral ) एवं उत्ताना ( saphenous ) सिराओं में एक रोग हो जाता है जिसे सिरावरोधी सक्थिशूल ( फ्लेग्मेशिया एल्बा डोलेन्स - phleg - masia alba dolens ) या श्वेत सक्थि ( white leg ) कहते हैं । गर्भवती स्त्रियों के प्रसूत होने के पश्चात् सूतिकावस्था में गर्भाशय के अन्तश्छद के घनात्रों द्वारा वैसी ही अवस्था प्रायः देखी जाती है । जब कभी मध्यकर्ण या गोस्तनकोटरों ( mastoid air cells ) में व्रणशोथ होता है तो उससे मस्तिष्क की पार्श्विकाख्या सिरापरिखा ( lateral sinus ) में रक्त का आतंचन होकर गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर देता है । प्रगण्डित सिराओं (varicose veins ) में बाहर से उपसर्ग पहुँच कर हलका शोथ उत्पन्न करके घनात्र बना सकता है । फिरङ्ग (सिफिलिस) और यक्ष्मा ( टी. बी. ) में चिरकालीन व्रणशोथों के उपस्थित रहने के कारण छोटी छोटी वाहिनियों में अभिलोपी अन्तःधमनीपाक ( obliterative endarteritis ) होने से भी घनास्त्र की उत्पत्ति हो सकती है । इसी प्रकार हृदय के अन्तश्छद में तीव्र या चिरकालीन हृदन्तश्छदपाक ( endocarditis ) होने पर भी घनात्र बनता है । ३. वाहिनीप्राचीर के रोग-वाहिनी की प्राचीर में जब कोई रोग हो जाता है तो उसका अन्तश्छद खुरदरा होकर घनास का कारण बन सकता है । वाहिन्यविहासी वर्णो ( atheromatous ulcers ) नग्न चूर्णीय पट्ट ( bare calcareous plates ), फिरङ्गी धमनीपाक ( syphilitic arteritis ), वाहिनीविस्तृतिजन्य ( aneurysmal ) स्यून ( SSC ) की ग्रीवा के अन्तरालीय स्तर के नष्ट हो जाने से वहाँ पर भी घनात्र उत्पन्न हो जाता है । वह धीरे धीरे बड़ा होकर उसकी ग्रीवा तक स्थान भर लेता है । उत्तानसिराओं के प्रगण्डित हो जाने पर या गुद-सिरा ( hemorrhoidal vein ) के प्रगण्डित होने पर घनास्त्रयुक्त अर्श हो जाता है । ४. बाह्य वस्तु ( foreign body in the vessel ) - जब वाहिनी के भीतर सूची, घोड़े का बाल या तार जो शस्त्रकर्म करते समय कभी अन्दर चला जावे या कोई प्राचीन आतंच अन्दर हो अथवा कोई अर्बुद या कीटाणु ( parasite ) भीतर हो तो इन सभी का धरातल रूक्ष होने के कारण वहाँ उन पर रक्त जम कर घनास्त्रोत्पत्ति करने लगता है । ५. अजारकता ( anozaemia ) - घनास्त्रोत्पत्ति में एक कारण रक्त में जारक की कमी तथा रक्त का अपचयात्मक उत्पादों ( catabolites ) द्वारा दूषित हो For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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