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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव २११ encephalitis ) भी कहते हैं । इङ्गलेंड में जहाँ यह रोग ५०००० में १ को होता है हालेंड में ५०००० में १० को देखा जाता है जिसका कारण यह है कि प्रथम देश में जहाँ १ वर्ष से नीचे ही मसूरीकरण होता है दूसरे देश में उसके बाद होता है। यह रोग मसूरीकरण के ग्यारहवें दिन प्रकट होता है। रोग का आक्रमण सहसा होता है साथ में ज्वर, वमी, टेरता, शिरःशूल तथा अंगघात आदि लक्षण होते हैं। इस रोग के विक्षत न व्यापक मस्तिष्कपाक से मिलते हैं और न सुषुम्नाधूसर द्रव्यपाक से ही मिलते हैं। इसमें मस्तिष्कछदपाक विभिन्न अंशों में देखा जाता है तथा लसीकोशीय भरमार मिलती है। सम्पूर्ण केन्द्रिय वातनाडी संस्थान में परिवाहिन्यव्रणशोथीय मणिबन्ध ( जैसे कि व्यापक मस्तिष्कपाक में देखे गये थे) मिलते हैं वे श्वेतपदार्थ में धूसरद्रव्य की अपेक्षा बहुत अधिक होते हैं। वे कोशा केवल परिवाहिन्य ( perivascular ) ही नहीं होते अपि तु श्वेतद्रव्य में पूर्णतः प्रसरित होते हैं, ये उष्णीक में खूब होते हैं तथा सुषुम्ना के कटिप्रदेश ( lumbar region ) में इतने अधिक होते हैं कि वहाँ पर तीव्र सुषुम्नापाक ( myelitis ) हो जाता है । इस रोग का प्रमुख विक्षत होता है वाहिनियों के समीपस्थ श्वेतद्रव्य का विमज्जीयन (demyelination ) जिसके कारण अयस् शोणितजारलि तथा वीगार्टपाल चित्रण से काली सतह पर पाण्डुर वर्ण के क्षेत्र दिखाई देते हैं । परड्रौ की दृष्टि में पाण्डुर क्षेत्रों में अणुश्लेषकोशा रहते हैं जो संयुक्त कणात्मक कोशाओं ( compound granular corpuscles ) में बदलते हैं जो केन्द्रिय वातनाडीसंस्थान के प्रमुख स्वच्छककोशा ( scavanger cells) कहलाते हैं। इस रोग में विमजि का अपहरण बहुत शीघ्र होता है। जहाँ आघातजन्य सुषुम्नापाक में विमजि कई सप्ताहों में हट पाती है यहाँ इन स्वच्छक कोशाओं द्वारा वह ३-४ दिन में ही हटा दी जाती है । यह विमज्जीयन शीतला, रोमान्तिका तथा प्रति आलर्क मसूरीकरण (antirabies inocculation ) में भी इसी द्रुतगति से देखा जाता है। यह अन्य दो मस्तिष्क रोगों विप्रथित जारव्य ( disseminated sclerosis ) तथा शिल्डर का परिअक्षीय प्रसर मस्तिष्कपाक (Schilder's encephalitis periaxialis diffusa ) में और भी देखा जाता है। मसूरिकोत्तरीय मस्तिष्कपाक का कारण टर्नबुल तथा मैकिंटोश मसूरी या रक्षाणुलसीस्थ विषाणु को मानते हैं पर अन्यों का यह कथन है कि यह विषाणु मस्तिष्क में शान्त पड़ा रहता है और रक्षाणुलस ( vaccine ) के द्वारा क्रियाशील कर दिया जाता है। रोमान्तिकोत्तरीय मस्तिष्कपाक के प्रमाण भी मिले हैं इनके मुख्य विक्षत अनेक परिवाहिन्य रक्तस्त्रावों के रूप में मस्तिष्क में मिलते हैं तथा व्रणशोथात्मक कोशीय मणिबन्ध पाये जाते हैं । मस्तिष्कोद में कोशागणन बढ़ जाता है तथा वर्तुलि प्रतिक्रिया भी बढ़ जाती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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