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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ विकृतिविज्ञान नेत्रचेष्टनी नाडी की क्रियाओं का विकार-प्रारम्भ में रोगी की द्विधा दृष्टि ( di. plopia) हो जाती है। वर्त्मपात (ptosis ) टेरता (strabismus) अन्य अधिक होने वाले लक्षण हैं। देखने की गड़बड़ी का मुख्य कारण चलाक्ष भुजायन ( accomo. dation ) का घात है। यहाँ आर्जिलराबर्टसन तारा का विलोम मिलता है अर्थात् प्रकाश में तारा ( pupil ) संकोच करता है पर चलाक्ष भुजायन के लिए संकोच नहीं करता । रोग के हट जाने के पश्चात् भी बहुत काल तक चलाक्ष भुजायन की दुर्बलता रोगियों में देखी गई है जिनमें एक रोगी को तो ५ मास तक द्विधा दृष्टि रहती है। तारा की उत्केन्द्रता का कारण मध्यमस्तिष्क में विक्षत होना है। ब्वायड के १९२० के रुग्णों में १६ में १२ की तृतीया नाडी की न्यष्टि के समीप विक्षत देखे गये थे। शीर्षण्या नाडीय घात-इस रोग का एक सामान्यलक्षण शीर्षण्या नाडियों ( cranial nerves ) का दौर्बल्य होता है इनमें नेत्र चेष्टनी ( तृतीया, चतुर्थी और षष्ठी) नाडियाँ तथा सप्तमी नाडी अत्यधिक प्रभावित होती हैं। अनेक रोगियों की इन नाडियों की न्यष्टियों में व्रणशोथ तथा विहास दोनों होते हुए देखे गये हैं। कुछ वातनाडियों के ऊपर मस्तिष्क के अन्दर विस्फारित रक्तवाहिनियों के द्वारा बहुत पीडन होता रहता है। शीर्षण्या नाडियों का जो घात हम इस रोग में पाते हैं वह स्थायीस्वरूप का नहीं होता। जैसे एक लक्षण टेरता आज रोगी में मिलेगा और कल पता नहीं कहाँ चला जावेगा। इसी प्रकार अदित आज है कल नहीं। इस घटना से ऐसा लगता है कि यदि नाडियों की न्यष्टियों में विह्रास हुआ होता तो यह अस्थायित्व (fleeting character of symptoms ) कदापि न होता। इससे यह मत पुष्ट होता है कि जब नाडियों पर या उनकी न्यष्टियों पर रक्तवाहिनियों का निपीड अधिक होता है तो ये लक्षण देखे जाते हैं और जब वह कम हो जाता है तो नहीं देखे जाते। चेष्टा विक्षोभ ( motor disturbances ) शारीरिक चेष्टाओं की कई प्रकार की गड़बड़ी इस रोग में देखी जा सकती है । प्रारम्भ में पेशीय काठिन्य ( muscular rigidity ) मिलती है। रोगी पेशी की मर्जी के मुताबिक नाचता है। पहले तो कोई क्रिया प्रारम्भ होना ही कठिन होता है। पर यदि क्रिया चलपड़ी तो फिर उसका रोकना रोगी के नियन्त्रण के बाहर की बात है। यदि रोगी थोड़ा मुस्करा दिया तो फिर मुस्कराहट का भाव बहुत देर तक चेहरे पर बना रहता है। __ इस रोग में ऊर्ध्व क्रिया चेतेक प्रकार का वास्तविक अंगघात ( true paralysis of the upper motor neuron type ) इस कारण नहीं होता कि मुकुलतन्त्रिका ( pyramidal tract) पर इस रोग का कोई प्रभाव नहीं देखा जाता। तीव्र और जीर्ण दोनों प्रकार के मस्तिष्कपाकों में विकृत पेशीय गतियाँ (ab. normal muscular movements ) देखी जाती हैं ये गतियाँ झटके के साथ होने वाली होती हैं जैसी की ताण्डवज्वर ( chorea ) में देखी जाती हैं। ठीक इनसे For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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