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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ विकृतिविज्ञान ! अपनी अभिरंजनाशक्ति ( staining power ) भी खो बैठते हैं और वियोजित ( disintegrated ) हो जाते हैं । रोगोत्तर काल में बृहत् एकन्यष्टिभत्तिकोशाओं का अभिरंजन भी हलका होने लगता है और उनका स्थान लघुलसीकोशा ( small lymphocytes ) ले लेते हैं । चित्रपट्टियों में मस्तिष्कगोलाणु देखने पर कई विविधताएँ मिला करती हैं। कभी तो उनकी संख्या बहुत कम होती है, कभी बिल्कुल नहीं मिलती और कभी बहुत बड़ी संख्या में वे पाये जाते हैं । नियमतः इनकी संख्या बहुत अधिक नहीं रहा करती । अधिकांश उनमें से कोशान्तःस्थ देखे जाते हैं पर कुछ कोशाओं के बाहर युग्मों में स्वतन्त्र भी मिल जाते हैं । यदि इनको देखना अभीष्ट है तो ग्राम से अभिरंजन न करके प्रोदलेन्य नील ( मिथाइलीन ब्लू ) से अभिरंजित करना चाहिए। यदि किसी तीव्र मस्तिष्कछदपाक के रोगी के मस्तिष्कोद में एक भी मस्तिष्क गोलाणु देखने को न मिले तो इसका अर्थ यही लगाना चाहिए कि यह पाक मस्तिष्क गोलाण्विक ही है और उसी दृष्टि से उपचार की अपेक्षा रखता है । क्योंकि फुफ्फुसगोलाण्विक या मालागोलाण्विक मस्तिष्कछदपाक के मस्तिष्कोद में फुफ्फुसगोलाणु अथवा मालागोलाणु अवश्य करके मिलते हैं । मस्तिष्कोद के आवर्ति परीक्षणों ( periodic examinations ) में मस्तिष्क - गोलाणु धीरे धीरे समाप्त होते हुए देखे जाने पर भी उसकी आविलता में कमी नहीं आती उसका कारण यह रहता है कि मस्तिष्कगोलाणु के नाश के लिए जो लसी हमकटिवेध द्वारा समय समय पर प्रयुक्त करते रहते हैं उससे प्रक्षोभ उत्पन्न होकर अरोगाणु मस्तिष्कछदपाक ( aseptic meningitis ) बन जाता है । अतः संवर्ध, चित्रपट्टी परीक्षण से अधिक उत्तम मार्ग है । एक परीक्षा शर्करा का पुनरागमन है । जब मस्तिष्कोद में शर्करा पुनः आने लगे तो इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि उससे मस्तिष्कगोलाणु समाप्त हो गये । इसके द्वारा भी हम वास्तविक मस्तिष्कछदपाक और प्रतिलसी द्वारा उत्पन्न प्रतिक्रिया में अन्तर कर सकते हैं । बहिस्तानिकीय मस्तिष्कगोलाविक उपसर्ग मस्तिष्कगोलाण्विक उपसर्ग रोगाणुरक्तता ( septicaemia ) के रूप में प्रारम्भ होकर एक मस्तिष्कछदपाक में समाप्त हो जाता है । कभी कभी अन्तिम अवस्था बिलकुल नहीं पहुँचती और रोगाणुरक्तता ही देखी जाती है । यह रोगाणुरक्तता कुछेक घण्टों से लेकर कई सप्ताह पर्यन्त देखी जा सकती है । इसका अधिकांश ज्ञान हमें हैरिक के अनुसन्धानों से प्राप्त हुआ है । उसका कथन है कि हमें जो साधारणतः रोगंचित्र देखने को मिलता है उसके साथ साथ चार और सम्भावनाएँ हो सकती हैं : - १ – मस्तिष्क गोलाण्विक रोगाणुता ( meningococcal sepsis ) जिसके साथ मस्तिष्कछदपाक न हो । रक्त का संवर्ध करने पर मस्तिष्क गोलाणु प्राप्त हों तथा आधुनिक रासायचिकित्सा ( chemotherapy ) द्वारा रोगी स्वस्थ हो जाता For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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