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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३ विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव ( iodized oil ) को ब्रह्मोदकुल्या में पहुँचाकर क्षकिरण चित्र लेने का उपक्रम करते हैं वे भी अजीवाणुक मस्तिष्कछदपाक उत्पन्न कर देते हैं। उस तैल के कारण धूसर द्रव्य में विह्रास और अग्रशृङ्गों की वाहिनियों में घनास्रोत्कर्ष होता हुआ देखा जाता है। अब हम यहां से आगे मस्तिष्कगोलाणुओं द्वारा उत्पन्न होने वाले मस्तिष्कछदपाक का वर्णन यथारुचि करते हैं: मस्तिष्कगोलाण्विक मस्तिष्कछदपाक मस्तिष्कछदपाक उत्पन्न करने में सर्वप्रधान हेतु होता है मस्तिष्कगोलाणु । रोग प्रायशः काचित्क (sporadic) स्वरूप का प्रारम्भ होता है और आगे चलकर कभी कभी व्यापक ( epidemic ) रूप भी धारण कर लेता है। इसकी व्यापकता रोमान्तिका, लोहितज्वर तथा शीतला से भिन्न होती है। इसकी व्यापकता में एक एक कुटुम्ब में एक से अधिकरोगी कदाचित् ही होता है जब कि उपरोक्त तीनों रोगों में एक कुटुम्ब में अनेक एक साथ व्याधित होते हुए देखे जा सकते हैं। साथ ही, इस रोग में एक दूसरे को रोग जाने के लिए संस्पर्श ( contagion ) का कोई सम्बन्ध बँधता सा प्रकट नहीं होता। अर्थात् एक गाँव से दूसरे गाँव या एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले में रोग किस प्रकार गया या सम्बद्ध हुआ इसका कोई स्पष्ट आधार देखा नहीं जाता। दस सहस्र व्यक्तियों में १-२ की मृत्यु होती हुई देखी जाती है। इन सबके लिए ब्वायड का निम्न वाक्य सदैव लाभप्रद रहता है-The explanation lies in the fact that the receptivity of the throat is high, while the susceptibility of the meninges is low.' कि उपसर्ग प्राप्ति में ग्रसनी अग्रणी है और उपसर्ग ग्रहण करने में मस्तिष्कछद पीछे रहती है। इसी कारण गले में उपसर्गकारी जीवाणुओं को लेकर चलने वाले असंख्यवाहक रहते हैं वे स्वयं रोग से प्रपीडित नहीं होते पर उनके द्वारा अनेकों में उपसर्ग पहुँचता है और जहाँ की मस्तिष्कछद उपसर्ग ग्रहण कर लेती है वहीं रोग उत्पन्न हो जाता है और वैसा सहस्रों में एक दो को होता है। इसी कारण एक मुहल्ले में इस व्याधि से पीडित मिलने पर बीच में दूर तक कोई पीडित नहीं मिलता और बहुत दूर के मुहल्ले में व्याधित रुग्ण मिल जाता है। मार्ग के अनेक प्राणियों की ग्रसनी में जीवाणु रहते हैं जो चुपके से दूसरे सिरे के मुहल्ले तक रोग पहुँचाने में समर्थ हो जाते हैं। मस्तिष्कगोलाणु का पूरा नाम है-युग्मगोलाणु कोशान्तःस्थ विशाल बौमीय मस्तिष्क गोलाणु ( diplococcus intracellularis meningitidis ofweichalbaum )। यह एक सुषव-धाव्य (gram -negative ) युग्म गोलाणु है । यह उष्णवातीय गोलाणु (gonococcus ) से आकारिकीयदृष्टया ( morphologically ) इतना साम्य रखता है कि दोनों को पृथक किया ही नहीं जा सकता। परन्तु उष्णवातीय गोलाणु की अपेक्षा इसका संवर्ध शीघ्र हो जाता है। अन्य सुषवधाव्य युग्मगोलाणुओं में जिनसे इसे पृथक् किया जाना चाहिए एक है पैनसगुच्छ १७, १८ वि० For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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