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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ विकृतिविज्ञान विशिष्ट पद्धति अपनानी पड़ती है जैसे जम्बुकी बाष्प द्वारा स्थिर करके फिर अभि रञ्जन करना । ज्यों ही मस्तिष्कोद निकाला जावे तुरत उसके कोशाओं को गिन लिया जाना चाहिए क्योंकि उनमें विघटन की प्रवृत्ति होती है । बहुन्यष्टिकोशा तो बहुत शीघ्र अदृश्य हो जाते हैं यदि उन्हें गणना के लिए बाहर भेजना पड़े तो तुरत १० प्रतिशत वस्व ( formalin ) का १ सीसी इतने ही मस्तिष्कोद में मिलाकर भेजना चाहिए ताकि कोशा सुरक्षित रखे जा सकें । मस्तिष्क के अनेक रोगों में ( फिरंग ), यक्ष्माजन्य मस्तिष्कच्छदपाक, सुषुम्ना धूसरद्रव्यपाक, जनपदोंसक मस्तिष्क पाक, सर्प जोस्टर, विप्रथित दा, आदि में लसीकोशोत्कर्ष ( lymphocytosis ) बहुत होती है । स्वस्थतरल ( मस्तिष्कोद ) में प्रोभूजिन की मात्रा ०.०२ से ०.०४ प्रतिशत ( प्रायः ०.०२५ ) तक रहती है । प्रोभूजिन केवल वर्तुलि ( globulin ) ही हो यह समझना भूल है । अनेक अवस्थाओं में वह शुक्लि ( albumin ) भी हो सकती है । जब कभी रोगों के कारण प्रोभूजिन की मात्रा बढ़ती है कोशा भी बढ़ते हैं पर कहीं कहीं अकेले कोशा बढ़ते हैं प्रोभूजिन नहीं ( जैसे कि सुषुम्ना धूसरद्रव्यपाक में ) और कहीं प्रोभूजिन बढ़ती है कोशा नहीं ( जैसे कि सुषुम्ना के अर्बुदों में ) । मस्तिष्कोद में शर्करा की मात्रा रक्त की मात्रा से आधी (०.०५ प्रतिशत ) रहती है । तीव्र मस्तिष्कच्छदपाक में और यक्ष्माजन्य मस्तिष्कच्छदपाक में यह मात्रा घट जाती है परन्तु जनपदोध्वंसकारी मस्तिष्कपाक ( epidemic encephalitis ) में वह बढ़ जाती है इस कारण तरल में शर्करा की मात्रा कितनी है यह ज्ञान प्राप्त कर लेने से निदान में पर्याप्त सहायता मिलती है । नीरेय ( chlorides ) की मात्रा मस्तिष्कोद में ०.७२ से ०.७५ तक रहती है जो मस्तिष्कच्छदपाक में कम हो जाती है । यच्माजन्य मस्तिष्कच्छदपाक में तो यह अत्यन्त अल्प हो जाती है । यदि वह ०.७५ से अधिक बढ़ जाती है तो उसका अर्थ वृक्कों की क्रिया-शक्ति का अभाव मान लेना चाहिए तथा ०.७२ से नीचे मस्तिष्कच्छदपाक जान लेना चाहिए । तन्त्विजाल ( fibrin web ) यदि तरल में तन्विजन ( fibrinogen ) उपस्थित हो तो उसे थोड़ी देर प्रकोष्ठीय तापमान पर ही स्थिर रखने से एक तन्त्विजाल बन जाता है । यह जाल पूयीय तरलों को छोड़ कर यचमाजन्य मस्तिष्कच्छद पाक, सुषुम्ना धूसरद्रव्यपाक, फिरङ्गज मस्तिष्कच्छदपाक, अरोगाण्विक लसीकोशीय मस्तिष्कच्छदपाक आदि में भी देखा जाता है । यदि यह जाल बने तो पूर्वोक्त ३ रोगों की ओर पहले ध्यान जाना चाहिए और शेष की ओर बाद में । विविध विकारों में मस्तिष्कोद में कुछ न कुछ परिवर्तन देखने को मिलते हैं । हम यहाँ संक्षेप में उन्हीं का एक बार स्मरण किए लेते हैं ताकि उसका महत्त्व समझ में आ सके For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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