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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ विकृतिविज्ञान वे बहुत होते हैं । जब प्ररसीय तारा कोशाओं में विकृति आती है तो उनसे तन्तुक ( fibrils ) उत्पन्न होने लगते हैं । पैनफील्ड नामक विद्वान् ने ताराश्लेष का वर्णन बहुत थोड़े शब्दों में करते हुए बतलाया है कि अष्टबाहु सम ताराकोशा वातनाडीसंस्थान की अनेकों रचनाओं को अपने पाश में आबद्ध करके ऊपर मृदुतानिका से और नीचे शोणवृक्ष ( vascular tree ) की विपुल शाखा प्रशाखाओं से विशिष्ट विस्तारों द्वारा आसक्त ( attached ) रहता है। । इसके क्या कार्य हैं उन पर जब हम विचार करते हैं तो हम निश्चिति से कह सकते हैं कि केवल योजी ऊति का साधारण कार्य ही ताराश्लेष सम्पन्न नहीं करता क्योंकि यदि ऐसा होता तो उसके साथ चूषण साधित्र ( suction apparatus ) जैसा विशिष्ट अंग न रहता। ऐसा ज्ञात होता है कि ताराकोशाओं का नाडीकन्दाणुओं ( चेतैकों ) की जीवनक्रिया के साथ अवश्य ही कोई सीधा सम्बन्ध रहता है व्याधि होने पर ताराकोशा क्रियाशील होकर बहुत कार्य करते हैं यदि मस्तिष्क में कोई व्रण कर दिया जावे तो ताराकोशा प्रवृद्ध हो जाते हैं एक से अनेक वन जाते हैं, तान्तव हो जाते हैं और व्रण के चारों ओर एक प्राचीर का निर्माण कर देते हैं । यह कार्य केवलमात्र ताराकोशाओं द्वारा ही सम्पादित होता है अल्पचेतालोमश्लेष वा अणुश्लेष इस कार्य में तनिक भी भाग लेते हुए नहीं दिखते । सर्वांगघात तथा अन्य वातनाडीसंस्थान के जीर्ण व्रणशोथों तथा विहासों में ताराकोशाओं का प्रमुखभाग रहता है तथा खूब श्लेषोत्कर्ष ( gliosis ) होता है । । अल्पचेतालोमश्लेष—इनमें न तो वाहिनीपाद होता है और न तन्तुक इस कारण ये ताराकोशाओं से पूर्णतः भिन्न होते हैं इनमें एक नग्न न्यष्टि देखी जाती है और यदि होर्टेगा के रजतप्रांगारीयविधि ( silver carbonate method ) के द्वारा अभिरंजन किया तो इनमें अल्पसंख्यक सूक्ष्म प्रवर्ध मिलते हैं जिनके कारण उसका नामकरण किया गया है । अल्पचेतालोमश्लेष कोशा २ स्थानों में मिलते हैं१- श्वेत पदार्थ में वातनाड़ी तन्तुओं के बीच में अन्तरापूल कोशा (interfascicular cells ) रूप में पंक्तियों में विन्यस्त तथा २ - धूसर पदार्थ में परिचेतैकीय उपग्रहों ( perineuronal satellites ) के रूप में, अधिकांश परिचेतैकीय उपग्रह इन्हीं कोशाओं के बनते हैं परन्तु कुछ अणुश्लेष से भी निर्मित होते हैं । अल्पचेताश्लेष का कार्य क्या है यह कहना अभी कठिन है परन्तु कदाचित् वह केन्द्रिय वातनाड़ी संस्थान के भीतर विमज्जिकंचुक ( myelin sheath ) का निर्माण तथा उसकी रक्षा का कार्य करता होगा । इसका प्रमाण यह है कि जब विमजीकरण (myelination ) प्रारम्भ होता है तो उस समय तन्तुमार्गों में अल्पचेताश्लेष कोशा बहुसंख्या में देखा जाता है । arशोथात्मक और विहासात्मक व्यवस्थाओं में जहां ताराश्लेषकोशा अत्यन्त क्रियाशील हो जाते हैं अल्पचेतालोमश्लेष कोशा साश्चर्य शान्त देखे जाते हैं । मृत्यु के For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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