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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ विकृतिविज्ञान उपसर्ग सदैव स्तनों की योजी ऊति में अपना प्रभाव करता है और उसकी नाभि ( focus ) निम्न ३ स्थलों में से कहीं भी हो सकती है: १-चर्माधः ( subcutaneous) २-अन्तःस्तनीय ( intramammary) ३-पश्चस्तनीय ( retromammary ) चर्माधः उपसर्ग त्वचा के नीचे से प्रारम्भ होता है, अन्तःस्तनीय स्तन ऊति की मोटाई में मिलता है; तथा पश्चस्तनीय स्तन और उसके नीचे स्थित मांसपेशी के बीच के अवकाश में देखा जाता है। इस तीसरी नाभि का कारण दूसरी नाभि के द्वारा ही प्रसार से बना करता है । अर्थात् स्तन के भीतर उपसर्ग रहते हुए उसके पीछे या नीचे दूषण का केन्द्र स्थापित कर देता है। यदि विद्रधियाँ उत्पन्न हुईं तो वे इन्हीं तीन नाभि-स्थलों में ही प्रकट होती हैं। कभी कभी तीनों नाभियों पर एक साथ ही विधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और वे विद्रधि पृथक् पृथक् भी रह सकती हैं अथवा एक दूसरे से संलग्न होकर स्तनों का बहुत अधिक विनाश भी कर सकती हैं। यदि विद्रधियों का पाटन न किया गया तो वे चर्म तक पहुँच कर स्वतः फट जाती हैं। कभी कभी वे वक्षगुहा में या फुफ्फुसच्छदगुहा में भी फटती हैं पर वैसा बहुत कम देखा गया है। जीर्णस्तनपाक-इसके २ प्रकार प्रसिद्ध हैं: १. जीर्ण उपसर्गात्मक स्तनपाक-इसका कारण पूयजनक जीवाणु भी हो सकते हैं और कवक ( actinomycosis ) तथा यक्ष्मा दण्डाणु भी। कवक और यक्ष्मा जन्य जीर्ण स्तनपाक का आभास हम उनके विशिष्ट अध्यायों में बतलाने वाले हैं। पूयजनक जीवाणुओं के द्वारा जब तीव्र स्तनपाक एक बार हो जाता है और वह गहराई में रहता है तो उसी से जीर्ण उपसर्गात्मक स्तनपाक ( chronic infective mastitis) का उदय होता है। तीवावस्था में बनी विधि से पूय निकलता रहता है उस विद्रधि में पर्याप्त तन्तूत्कर्ष तथा गोलकोशाओं की खूब भरमार हुई रहती है और उस क्षेत्र की स्तनऊति पूर्णतः नष्ट भ्रष्ट हो जाती है। धीरे धीरे वहां तान्तव उति और व्रणवस्तु का निर्माण हो जाता है और स्थान बहुत कठिन हो जाता है जिसे देख कर स्तनकर्कट का सन्देह हो सकता है वह सन्देह इसलिए और दृढ़ हो जाता है कि कक्षास्थ लसग्रन्थियों ( axillary glands ) में पाक होने के कारण वे प्रवृद्ध हो जाती हैं। २. जीर्ण तन्वीय स्तनपाक ( chronic involutionary mastitis ) इसके अधोलिखित कुछ और भी नाम हैं अ-शिमैल्खुशामय ( schimmelbusch's disease ) आ-स्तनस्य तन्तुकोष्ठीय रोग ( fibrocytic disease of the breast) इ-जीर्ण स्तनपाक ( chronic mastitis) ई-रैक्लस व्याधि ( maladie de R'eclus ) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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