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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव जिसके साथ साथ रक्तपूर्ण कणन ऊति का निर्माण भी होता चलता है। उस कणन ऊति के कारण द्रतगति से उसके ऊपर शल्कीय अधिच्छद के स्थान पर एक उच्च स्तम्भाकारी अधिच्छद बनने लगता है। उसका केवल एक ही स्तर भी हो सकता है अथवा उसमें अंकुर ( papillary projections ) भी देखे जा सकते हैं जिनके नीचे आगे चल कर नई ग्रन्थियाँ भी बन जाती हैं। अन्त में पार्थों से शल्कीय अधिच्छद स्तम्भाकारी अधिच्छद के नीचे पनपने लगता है और इसे उखाड़ फेंकता है। ज्यों ज्यों रोग का उपशम होता जाता है ग्रन्थियों तक शल्कीय अधिच्छद चला जाता है और उनके मुखों को बन्द कर देता है या उन्हें पूरा पूरा भर देता है जिस सबका परिणाम यह होता है कि जो लावाधिक्य निरन्तर चलता था वह रुक जाता है। मुख के बन्द हो जाने के कारण कभी कभी ग्रन्थियाँ अपने स्राव के कारण बहुत अधिक विस्फारित हो जाती हैं और छोटे छोटे आनील कोष्ठिकीय अर्बुद बना देती हैं जिन्हें बाह्यग्रैवकोष्ठिकाएँ ( Nabothian cysts or ovula Nabothi) कहते हैं। ___ जीर्ण अवपाक का ग्रैव कर्कट के साथ क्या सम्बन्ध है यह कहना नितान्त कठिन है यद्यपि इस अवस्था को देख कर उसका स्मरण हो उठता है। ____ स्त्रीप्रजननाङ्गों पर व्रणशोथ का क्या परिणाम होता है इसका संक्षिप्ततः विचार कर लेने के पश्चात् यदि स्तनों पर व्रणशोथ के परिणामों का भी बोध कर लिया जावे तो वह अप्रासंगिक नहीं माना जाना चाहिए इसी लिए हम अब स्तनपाक का वर्णन कहते हैं। FAAT9175 ( Mastitis) तीव्रस्तनपाक-युवतियों में प्रसवोपरान्त जब स्तनों से दुग्ध का स्राव होने को होता है उस समय प्रारम्भिक दिनों में तीव्र स्तनपाक देता जाता है उसके साथ पूयन ( suppuration ) भी हो सकता है। परन्तु यदि सावधानता से चिकित्सा की गई तो पूयोत्पत्ति से पूर्व ही व्रणशोथ दूर हो जा सकता है। जन्म के तुरन्त पश्चात् नवजात शिशु में तथा वयस्क बालाओं में भी तीन स्तनपाक देखा जा सकता है। तीव्र स्तनपाककारी २ जीवाणु मुख्यतः होते हैं इनमें प्रधान स्वर्णपुंज गोलाणु है और गौण मालागोलाणु । ये जीवाणु चूचुकपाटों ( nipple cracks ) द्वारा, शिशु को दूध पिलाते समय, स्तनों के समीप स्थित लसीकावहाओं द्वारा स्तनों तक पहुँच कर उपसर्ग का कारण बनते हैं। स्तनों पर व्रणशोथ के कारण ऊष्माधिक्य, शूल, प्रगण्डता और अधिरक्तता के चारों लक्षण स्पष्टतः प्रगट होते हैं । आगे चलकर जब इसमें पूयोत्पत्ति हो जाती है जो विधि भी बन जाती है । समीपस्थ लसग्रन्थियाँ सशूल हो कर सूज जाती हैं। पाश्चात्यों ने स्तनों को भी प्रजनन का ही एक अंग माना हे :The female breast should be properly regarded as part of the ganerative system, since it is under the same hormonal control as the uterus and goes through similar cycles of hyperplasia and involution, -Green For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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