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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १५६ आन्त्रिक ज्वरदण्डाणु तथा अण्यान्त्रिक ज्वरदण्डाणु के द्वारा रोग होने पर आम्लिक होती है पर यदि मालागोलाणु या गुच्छगोलाणु रोग के कारण हुए तो क्षारीय होती है; कभी-कभी एक ही रोग में रोगकारी जीवाणु तथा प्रतिक्रिया दोनों बदल जाते हैं । ४. यह रोग श्लेष्मलकला और उपश्लेष्मलकला तक ही सीमित रहता है; जहाँ व्रण बन जाता है वह पेशी तक रोग पहुँच सकता है परन्तु बस्तिपेशी इस रोग में कोई भाग लेती हुई नहीं देखी जाती है । ५. मिश्र देश में बिल्हार्जियासिस नामक रोग में बस्ति प्राचीर में जब स्त्रीपुंस ( schistosoma ) के अण्डे ( ovoid ) अपना मार्ग बनाते हैं उस समय वे अण्डे जिनमें शूक ( spike ) होते हैं बस्ति की श्लेष्मलकला में व्रणशोथात्मक पुर्वंगक ( inflammatory polyps ) उत्पन्न कर देते हैं जिसके कारण एक प्रकार का अनुतीत्र बस्तिपाक उत्पन्न हो जाता है । इसमें रक्तमेह, शूल, बार-बार मूत्रत्याग आदि होते हैं परन्तु पूय बहुत कम या बिल्कुल नहीं मिलता । मूत्र के मथित्र में अण्डे देखे जा सकते हैं । I I जीर्ण बस्तिपाक — इसमें बस्ति के प्रसरतन्तूत्कर्ष के सभी चिह्न मिलते हैं । इस रोग में सभी स्तर अन्तर्भूत हो जाते हैं । श्लेष्मलकला पेशीस्तर से बँध जाती है और बहुत फैली हुई ( तत ) दिखाई देती है, वह चिकनी और अपुष्ट भी हो जाती है अन्यथा अधिच्छद के नीचे की कणन ऊति इसमें अनेक परमपुष्ट कूट ( ridges ) और वलियाँ ( rugose ) उत्पन्न कर देती है जो सब इस रोग में एक होकर कला को चिकना बना देती है । श्लेष्मलकला में अनेक पुर्वंगक ( polyps ) उत्पन्न हो जाते हैं । श्लेष्मकला का रंग उड़ जाता है वह गुलाबी न होकर आपीत हो जाता है । उसमें कहीं-कहीं पर बभ्रु वर्ण की शोणायसि संचित हो जाती है उसके संचय का कारण उपश्लेष्मलकला में रक्तस्राव का होना है । यदि मूत्र के स्राव में बाधा रहे तो पेशीतन्तुपुंज ( muscle fasciculi ) में अनेक स्थलों पर वर्मन ( herniation ) हो जाता है । I यदि बहुत समय तक बस्ति श्लेष्मलकला पर प्रक्षोभ होता है तो अन्तर्वर्ती कोशाओं वाले अधिच्छद ( transitional cell epithelium ) में समपुष्टि ( metaplasia ) होने लगती है जिसके कारण एक विशिष्ट स्तरितशल्काधिच्छद ( typical stratified squamous epethelium ) बन जाता है । वह भी आगे चल कर परमपुष्ट हो जाता है जिसके कारण श्लेष्मलकला में इतस्ततः श्वेत सिध्म (white patches) उत्पन्न कर देता है जिसे बस्तीक सितचय ( vesical leucoplakia ) कहते हैं । मूत्रनालपाक ( Urethritis ) मूत्रमार्ग, मूत्रनाल या मूत्रप्रसेक यूरेथा के विभिन्न नाम हैं । मूत्रनाल में प्रमेह या उष्णवातगोलाणु (gonococci ) के द्वारा जो व्रणशोथ होता है वह बहुत महत्त्वपूर्ण होने For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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