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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ विकृतिविज्ञान अण्वीक्षण करने पर इस रोग में केशालबाह्य प्रकार के बराबर तीन परिवर्तन प्रायशः अनुपस्थित रहते हैं । यद्यपि इसमें अधिकांश जूटिकाएँ प्रभावित होती हैं परन्तु उनमें इतनी विकृति नहीं आती कि उनकी रचना का व्यंगीकरण या विघटन (disorganisation ) हो जावे । वृक्कजूटिकीय केशालों के अन्तश्छदीय कोशाओं का प्रगुणन बढ़ा हुआ मिलता है परन्तु प्रावर के भीतर अधिच्छदीय अर्द्धचन्द्र का निर्माण बहुत कम होता है। इसमें अन्तरालित ऊति में व्रणशोथकारी कोशाओं की भरमार भी कोई अधिक नहीं मिलती। इस रोग में विमेदाभ विहास और उसकी नालिकीय अधिच्छद में भरमार सब से अधिक देखी जाती है साथ में काचरविन्दु विह्रास भी थोड़ा सा मिलता है जो अधिक गम्भीर वृक्कपाकों में देखा जाता है। आगे की अवस्थाओं में तन्तुरहों के इतस्ततः प्रगुणन का भी प्रमाण मिल जाता है और अन्तरालित ऊति में तन्तूत्कर्ष भी पाया जा सकता है। बड़ी रक्तवाहिनियों में भी थोड़ा प्रगुणात्मक परिवर्तन का आभास मिलता है जो कि आगे प्रकट होने वाले धमनी जारख्य ( arterio-sclerosis ) की पूर्व भूमिका जान पड़ती है। ___इस रोग में मूत्र की मात्रा अल्प रहती है उसका आपेक्षिक धनत्व भी अधिक रहता है उसमें श्विति की बहुत बड़ी मात्रा उपस्थित रहती है जिनके कारण मूत्र को थोड़ा आम्लिक बना कर उबाला जाय तो वह प्रायः जम कर ठोस हो जाता है। इस अवस्था में वृक्क अपना कार्य करते रहते हैं जिसके कारण रक्तमिह अपनी स्वाभाविक मर्यादा में रहता है। मूत्र में लाल कण (रुधिराणु) पाये जाते हैं जिनके साथ निर्मोक और बहुन्यष्टि कोशा भी मिलते हैं। मूत्र में विमेदाभ के विन्दुक भी मिल सकते हैं। आगे जब तन्तूत्कर्ष होने लगता है मूत्र कुछ अधिक पतला पड़ता जाता है उसकी राशि बढ़ती जाती है तथा वितिमूत्रता कम होती जाती है । नैदानिक दृष्टि से इस रोग में स्थूल शोफ (gross oedema ) होता है। हम पीछे तीव्रावस्था के वर्णन में भी कुछ शोफ का होना लिख चुके हैं। ग्रीन ने इन दोनों शोफों का भेद बतलाते हुए लिखा है 'The oedema of acute nephritis must he distinguished from the massive oedema of the subacute stage. In the former the oedema fluid has characters which are more suggestive of the obstructive or inflammatory oedemas than of true nephritic oedema. The protein content of the fluid is relatively high, being over 1 per cent in contrast to the very low content ( 0.1 per cent ) in true nephritic oedema, while the oedema is itself neither so massive nor so widely distributed. अर्थात् तीव्र वृक्कपाक के शोथ में तथा अनुतीव्र वृक्कपाक के शोथ में पर्याप्त अन्तर होता है। पहले में शोथ-द्रव के जो लक्षण मिलते हैं वे अवरोधात्मक अथवा व्रण For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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