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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १४३ जाते हैं उन पर इतना कार्य का भार पड़ जाता है कि वे कार्यजन्य परम पुष्टि ( work ( hypertrophy ) के कारण पर्याप्त बड़े दिखाई देते हैं । __ इतना सब वर्णन करने के उपरान्त अब हम प्रसर और नाभ्य दोनों प्रकार के जूट वृक्कपाकों का विस्तारशः वर्णन करते हैं जैसा कि पाश्चात्य ग्रन्थकारों ने प्रकट किया है। प्रसरजूटिकीय वृक्कपाक ( Diffuse glomerulo nephritis) ___ कारण-प्रसर जूटिकीय वृक्कपाक का मुख्य कारण मालागोलाण्विक उपसर्ग है। यह उपसर्ग सर्दी से या हवा लगने से गले में लगता है जिसके कारण ज्वर आता है। लोहित ज्वर, विसर्प. श्वसनक या प्रसूति ज्वर में भी यह उपसर्ग होता है। जब पहली तीव्रावस्था बीत जाती है और मालागोलाणुओं के लिए शरीर में एक प्रतिकारिता तैयार हो जाती है उसी के साथ जब एक कफरक्तीय हृषकरण (allergic sensitisation) भी शरीर में स्थित हो जाता है तब वृक्कों पर प्रभाव पड़ कर उनमें वृक्कपाक होने लगता है। यदि किसी प्राणी को मालागोलाणुओं से उपसृष्ट कर दें तो भी उसके वृक्कों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पर यदि वह प्राणी पहले से प्रतीकारजनित (immunized ) कर दिया जावे और फिर इस गोलाणु का प्रवेश किया जावे तो जैसा कि मनुष्यों में देखा जाता है उस प्राणी के वृक्कों में प्रसरित विक्षत देखे जा सकते हैं। अब हम इस रोग की तीव्र अनुतीव्र और जीर्ण अवस्थाओं पर प्रकाश डालते हैं : तीव्र अवस्था-इस अवस्था में प्रत्यक्षदर्शीय परिवर्तन बहुत कम होते हैं। यदि वृक्क को काट कर देखा जाय तो उसका बाह्यक सूज कर मोटा हो जाता है जिसके कारण वृक्क भी कुछ फूला हुआ दिखाई देता है इस सूजन के कारण प्रावर सरलता से छीला जा सकता है। प्रावर के नीचे छोटे छोटे नीलोहाङ्कीय रक्तस्राव ( petechial haemorrhages ) प्रायः देखे जाते हैं। वृक्क का धरातल चिकना रहता है और उसके वर्ण में कोई विशेष अन्तर नहीं दिखाई देता वृक्क का बाह्यक ( cortex) उसके मज्जक ( medulla) की अपेक्षा कुछ पाण्डुर ( pale ) देखा जाता है । मज्जक में रक्ताधिक्य होने के कारण बाह्यक और मज्जक का विभेद स्पष्ट दिखाई पड़ता है आगे चलकर जब जूटों में रक्ताभाव हो जाता है तो वे आधूसर विन्दु के रूप में प्रकट हुए देखे जाते हैं। अण्वीक्षण पर निम्न स्थिति मिलती है: १. जूटों में शोथ हो जाता है जिसके कारण उनकी न्यष्टियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। २. नालिकाओं में मेघसमशोथ ( cloudy swelling ) हो जाती है उनके भीतर रक्त के लाल कण पाये जाते हैं, बहन्यष्टि सितकोशा देखे जाते हैं और अधि For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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