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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १२७ भरमार । कामला इस रोग में अन्तिम अवस्थाओं में ही दृग्गोचर होता है उसका तब जो कारण होता है वह यकृत् की क्रियाशक्ति का ह्रास अधिक होता है न कि पित्तप्रणालियों का अवरोधात्मक संपीडन ( compression)। बहुखण्डीय यकृद्दाल्युत्कर्ष का प्रभाव ___ जब तक रोग अन्तिम अवस्था को प्राप्त नहीं होता तब तक, यकृत् कोशाओं का चाहे कितना ही व्यापक विनाश हो चुका हो, यकृत् क्रिया यथावत् चलती रहती है। यकृद्दाल्युत्कर्ष का सीधा वैकारिकीय प्रभाव केशिकाभाजीय अवरोध ( portal obstruction) होता है जिसका मुख्य कारण केशिकाभाजिसिरा की शाखाओं के उपर तान्तव ऊति का संपीडन हुआ करता है । इस संपीडन के कारण पित्तप्रणालिकाओं के भीतर निपीडन ( pressure ) की वृद्धि हो जाती है जिसे कम करने में जालकरण वाहिनियां ( anastomosing channels ) भाग लेती हैं। केशिकाभाजीय संस्थान और सामान्य सिरा संस्थान की जालक्रिया निम्नप्रकार से बनती है: १. गुद के समीप-अधरान्त्रिकी सिरा (inferior mesenteric vein) तथा गुदिका सिरा ( hemorrhoidal vein ) के मध्य । २. नाभि के चारों ओर-उदर प्राचीर की सिराओं तथा यकृत् की रज्जुबन्धनिका ( round ligament ) की सिरा के मध्य । ३. अधरान्त्रिकी सिरा ( mesenteric vein) तथा उदरच्छदपृष्ठीय (retroperitoneal ) सिराओं के मध्य । ४. आमाशय क्रोडिका सिरा ( coronary veins of stomach) तथा अधर अन्नप्रणालिका सिराओं ( lower oesophageal veins ) के मध्य । ५. यकृत् के दन्तशिखिरिका स्नायु (suspensary ligament of the liver ) की सिराओं तथा महाप्राचीरापेशिकीय सिराओं के मध्य जो पुरोवंशिका ( azygos ) सिरा में रक्त भेजती हैं। इन सिराजालों की वृद्धि के १-अर्श ( hemorrhoids), २-नाभिकीय सिराविस्फार ( caput medusae ), ३-उदरच्छद के नीचे सिराओं का अत्यधिक वर्धन जो वृक्कों के चारों ओर विशेषतः देखा जाता है, ४-अन्नप्रणाली के अधोभाग की सिराओं के विस्फार के कारण अन्नप्रणाली सिरा विस्फार (oesophageal varix ) नामक विकार हो जाता है यदि इस विस्फार में किसी कारण विदार हो जावे तो रक्त आमाशय में भर जाता है जहाँ से रक्तवमन ( hematemesis ) होने लगता है। केशिकाभाजिकीय अवरोध के कारण सम्पूर्ण महास्रोतीय सिरासंस्थान आमाशय से गुदपर्यन्त निश्चेष्ट रक्तान्वित (passively congested ) हो जाता है। इसके कारण महास्रोत की उपश्लेष्मल कला में स्थित वाहिनियाँ रक्त से फूल जाती हैं और For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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