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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव १०७ pation ) रहता है परन्तु जब प्रक्षोभक आंतों पर भी प्रक्षोभ करने में समर्थ होता है तो अतीसार देखा जाता है। आमाशय में इतने विकारों का परिणाम शिरःशूल में हो जाता है। मूत्र की प्रतिक्रिया आम्लिक होती है उसमें शुक्लि की झलक देखी जाती है । ज्वर प्रायः नहीं रहता पर बच्चों में नाड़ी द्रौत्य के साथ ज्वर भी मिल सकता है ओष्ठों का पाक ( herpes labialis ) भी कभी कभी मिलता है। रक्त के श्वेत कण बढ़ जाते हैं । आमाशयिक अम्ल शनैः शनैः कम (hypochlorhydria) होकर पूर्णतः समाप्त (achlorhydria) होता हुआ भी मिलता है। तीव्र सपूय आमाशय पाक (acute suppurative gastritis) नामक व्याधि में तीव्र उदर शूल के साथ वमन मिलती है जिसमें पूय की उपस्थिति देखी जाती है। मालागोलाणु के अतिरिक्त आन्त्रदण्डाणु ( B. coli ) अथवा फुफ्फुसगोलाणुं ( pneumococci ) भी पूयोत्पत्ति के कारक हो सकते हैं। पूयरक्तता (pyaemia), कालस्फोट ( anthrax ), या मसूरिका ( small pox ) के द्वारा भी यह रोग बनता है। इसमें उपश्लेष्मलकला में विद्रधियां बनती हैं जो फटती हैं और पूयोत्सर्ग का कारण होती हैं यह उदरच्छदकलापाक का भी कारण हो सकता है। जीर्ण आमाशयपाक (chronic gastratis) दो प्रकार का देखा जाता है। एक वह जिसमें आमाशय से अत्यधिक अम्लस्राव होता है (acid gastritis)। इसके कोई विशेष लक्षण प्रकट नहीं होते जब तक कि उसके साथ आमाशयिक व्रण का उपद्रव न हो। केवल आमाशय भाग में सख्ती तथा स्पर्शाक्षमता के साथ मल में रक्तांश की उपस्थिति मिलती है। क्ष-चित्र में भी कोई विरूपाकृति नहीं देखी जाती। पर यदि व्रण हुआ तो क्ष-चित्र में उसकी छाया पाई जा सकती है। व्रण की उपस्थिति में या क्षत हो जाने पर रक्तवमन का होना जीर्ण आमाशय पाक में सम्भव है। आमाशय के प्रत्यक्ष दर्शन (gastroscopy) द्वारा इस रोग का ज्ञान ठीक से मिलता है। दूसरा वह है जिसमें अम्ल की कमी देखी जाती है (achlorhydric gastritis ) इसका मुख्य लक्षण हृल्लास या मचली आना है जो सदैव देखा जाता हो ऐसा भी कोई नियम नहीं। हल्लास के पश्चात् तुधानाश (anorexia) देखा जाता है। तुधानाश स्वतन्त्रतया भी हो सकता है। पेट में भारीपन का अनुभव होता है अग्निमान्द्य होने पर भी कभी कभी खट्टी डकारें देखी जाती हैं। वमन कभी कभी आती है और रोगी को उससे शान्ति का अनुभव होता है । इस रोग का कारण मद्यपान प्रायशः होता है। ___ अतिपुष्ट या अपुष्ट ये दो प्रकार के जीर्ण आमाशय पाक के प्रकारों में पहले का परिणाम ही दूसरा होता है। अतिपुष्ट आमाशयपाक जिसमें अम्ल का अतिस्राव होता है, इसके हो जाने पर आमाशय की श्लेष्मल कला मोटी पड़ जाती है उसमें अनेक मोटी वलियां ( heavy folds ) पड़ जाती हैं और वे बहुशाख ( polypoid ) भी हो For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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