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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ विकृतिविज्ञान विषाणुजन्य रोगों के समान ही होती है। यह सौम्य स्वरूप का रोग है पर कुछ रुग्ण कालकवलित भी होते देखे गये हैं इस रोग की महामारी सी चलती है इसका प्रारम्भ शिरःशूल, नासाप्रसेक और गले की खराबी से होता है फिर कुछ कालोपरान्त ज्वर, कास, दौर्बल्य और फौफ्फुसीक लक्षण प्रकट होते हैं कभी कभी तो केवल श्वासनालपाक ( bronchitis) या श्वसनिकापाक ( bonchiolitis ) से आगे यह रोग नहीं बढ़ता। कास में श्लेष्मपूयीय ( muco-purulent ) पदार्थ निकलता है। वायुकोशों में स्राव कम मिलता है। परिश्वासनालिय अन्तरालित क्षेत्रों में एकन्यष्टिकोशाओं की भरमार देखी जाती है । तीव्रावस्थाओं तीव्रशोथ ( acute oedema) मिल सकता है। इस रोग में स्टोन और पासमोर ने रक्त रस में 'शीत' शोणप्रसमूहियों ( cold haemoglutinins ) की उपस्थिति बतलाई है जो ०-२५° शतांश पर लाल कणों के प्रसमूहन की शक्ति रखती हैं। ये प्रथम सप्ताह के अन्तिम चरण में प्रारम्भ होकर १० से १४ दिन में अधिकतम होकर फिर घट जाती हैं। (८) महास्रोत पर व्रणशोथ का परिणाम मुख से लेकर गुद तक का सम्पूर्ण भाग महास्रोत कहलाता है। व्रणशोथ का महास्रोत पर क्या परिणाम होता है उसे अब हम व्यक्त करते हैं। सर्वसर या मुखपाक ( Stomatitis ) यह एक प्रकार का शिशु या बाल रोग है। इसमें मुख की श्लेष्मलकला का पाक हो जाता है । सुश्रुत ने सर्वसर नाम से मुखपाक का वर्णन किया है। उसने वातज सर्वसर, पित्तज सर्वसर, कफज सर्वसर तथा रक्तज सर्वसर उसके ४ भेद किए हैं। उनके लक्षण निम्न प्रकार दिये गये हैं स्फोटः सतोदैर्वदनं समन्ताद् यस्याचितं सर्वसरः स वातात् । रक्तैः सदाबस्तनुभिः सपीतैर्यस्याचितं चापि स पित्तकोपात् ।। कण्डूयुतैरल्परुजैः सवर्णैर्यस्याचितं चापि स वै कफेन ।। रक्तेन पित्तोदित एक एव कैश्चित् प्रदिष्टो मुखपाकसंशः॥ (सु. नि. स्था. अ. १६) शार्ङ्गधर ने मुखपाक के ५ भेद किए हैं:१. वातिक मुखपाक ४. रक्तज मुखपाक २. पैत्तिक मुखपाक ५. सन्निपातज मुखपाक ३. श्लैष्मिक मुखपाक वातज सर्वसर में सतोदस्फोट होते हैं, पित्तज में लालवर्ण सदाह पतले पीले स्फोट होते हैं, कफज में सवर्ण स्फोट कण्डूयुक्त देखे जाते हैं, रक्तज में पैत्तिक सर्वसर के समान लक्षण होते हैं और सान्निपातिक में तीनों दोषों के लक्षण पाये जाते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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