SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव से भी यह दशा बनती है उसे सपूय वायुकोटरपाक ( suppurative sinusitis) कहते हैं । ८३ रोहिणी दण्डाणु के कारण नासा से लगातार चिरकाल तक प्रसेक होता रहता है उसे रोहिणीय नासाकलापाक ( diphtheritic rhinitis ) कहते हैं । तुण्डिकेरी या तुण्डिकापाक ( Tonsillitis ) अष्टाङ्गसंग्रहकार ने मुखरोगविज्ञान का विचार करते हुए तुण्डिकेरी ( tonsillitis ) की निम्न ब्याख्या की है जो इस प्रकार है: हनुसन्ध्याश्रितः कण्ठे कार्पासीफलसन्निभः । पिच्छिलो मन्दरुक् शोफः कठिनस्तुण्डिकेरिका ॥ यह एक प्रकार का शोफ ( inflammation ) है जो कंठ में हनुसन्धि में स्थित है, जो कपास के फल के सदृश ( गोल बादाम जैसा ) होता है इसके ऊपर चिपकना स्राव रहता है, मन्द मन्द शूल होता है और इसमें पर्याप्त काठिन्य भी होता है । यह सब वर्णन तुण्डिकेरी को टान्सिलाइटिस बताने के लिए पर्याप्त है । आधुनिक भाषा में तुण्डिकेरी या तुण्डिकापाक तीव्र और जीर्ण दो प्रकार का होता है । तीव्र तुण्डिकेरी को स्यूनिकीय तुण्डिकापाक ( follicular tonsillitis ) भी कहते हैं । यह तुण्डिका ग्रन्थि के गत ( crypts ) और उनके समीप की लसाभ ऊत का शोफ है । इसमें तुण्डिकाग्रन्थियाँ लाल वर्ण की तथा सूज जाती हैं । गत के मुख से पू निकलता रहता है । इसके कारण कण्ठ में शूल का होना तथा कुछ ज्वर हो जाना प्रायः मिलता है । यदि कुछ अवस्था में और गिरावट आई तो समीपस्थ कोशाओं में प्रशोथ होकर परितुण्डिकीय विद्रधि ( peritonsillar abscess ) का रूप बन सकता है। जीर्ण तुण्डिकेरी ही वास्तव में उपरोक्त शास्त्रोक्त तुण्डिकेरी है यह बहुधा होती है इसका हेतु तीव्र तुण्डिकेरी के आक्रमण का बार बार होना प्रायः हुआ करता है; पर कभी कभी यह स्वयं भी बिना तीव्र आक्रमण के धीरे से होती हुई देखी जाती है । इसमें तुण्डिका ग्रन्थियां फूल कर बड़ी 'कार्पासी फलसन्निभ' हो जाती हैं वे दूषित ( septic ) हो जाती हैं काटने पर लसाभ ऊति की प्रवृद्धि मिलती है तन्तूत्कर्ष और जीर्ण पूयन के प्रमाण भी मिलते हैं। यह रोग उन बच्चों में अधिक प्रमाण में मिलता है जिन्हें कण्ठशालूक ( adenoids ) भी होते हैं । For Private and Personal Use Only स्वरयन्त्रपाक ( Laryngitis ) तीव्र और जीर्ण दो प्रकार का स्वरयन्त्र पाक होता है । तीव्र स्वरयन्त्रपाक तीव्र सेकी व्रणशोथ के कारण होता है जिसमें जीवाणुजन्य उपसर्ग - फुफ्फुस गोलाणु तथा प्रसेकी गुच्छगोलाणु (micrococcus catarrhalis ) -- प्रमुख हेतु होता है । प्रतिश्याय या पीनस या सर्दी के कारण बहुतों का स्वरभंग हो जाता है । यह रोमान्तिका, लोहित ज्वर, इन्फ्लुएंजा इन सब के कारण हो सकता है। तीव्र स्वरयन्त्रपाक
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy