SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव नासा के पश्वभाग के पीछे गला है। यदि हम मुख को खूब चौड़ाकर खोल लें तथा जीभ को दबाकर आधा शब्द करें तो गला या ग्रसनिका का सम्पूर्ण क्षेत्र भले प्रकार देखा जा सकता है। वहाँ हमें कोमल तालु और काकलक (uvula) देखने को मिलते हैं । कोमल तालु के सामने से तथा पीछे से दो गलतोरणिकाएँ ( fauces ) एक पुरस्तम्भिका (anterior pillar of the fauces ) दूसरी पश्चिम स्तम्भिका ( posterior pillar of the fauces ) निकली हुई देखी जा सकती हैं। ये तोरणिकाएँ श्लेष्मलकला के भंजन ( folds ) से बनती हैं जिनके गर्भ में पेशी रहती हैं। ये पेशियाँ कण्ठसंकोचिनी ( constrictor of the pharyux) होती हैं। दोनों तोरणिकाओं के बीच में दोनों ओर एक एक तुण्डिकाग्रन्थि (tonsil ) रखी रहती है। जहाँ तोरणिकाएँ मिलती हैं वहाँ तुण्डिकाओं के ऊपर एक खात (recess) छूटा रहता है इसे तुण्डिकोर्द्धखात ( supratonsillar fossa ) कहते हैं। तुण्डिकाग्रन्थि के स्वतन्त्र धरातल पर श्लेष्मलकला बिछी रहती है जिसमें तुण्डिकीय गौ ( crypts ) के मुख आकर खुलते हैं । इन गों में भी इसी श्लेष्मलकला का अधिच्छद रहता है और दोनों संतत रहती हैं। बाहरी या गंभीर तल पर तुण्डिका ग्रन्थि ऊति से आच्छादित रहती है जो एक प्रकार का अपूर्ण प्रावर ( incomplete capsule ) सा मालूम देता है । इसी प्रावर के कारण बिना किसी कठिनाई के ग्रसनी को हानि बिना पहुंचाए हुए तुण्डिकोच्छेद किया जा सकता है । शेष सम्पूर्ण ग्रसनी की श्लेष्मलकला शल्काधिच्छदीय कोशाओं ( squamous cells) द्वारा निर्मित तथा अन्ननलिका की श्लेष्मलकला से संतत होती है। _ ग्रसनी के निचले भाग से स्वरयन्त्र (larynx)प्रारम्भ होता है। स्वरयन्त्र एक प्रकार का बक्स है जो कृकाटक (cricoid ) एवं अवटुक ( thyroid ) तरुणास्थियों द्वारा बनता है परन्तु जिसमें अधिजिबिका ( epiglottis) तथा घाटिका ( arytenoid) कास्थियाँ भी भाग लेती हैं। स्वरतन्त्रियाँ चतुर्थ ग्रैविक कशेरुका की सीध में होती हैं। सामने अवटुका तरुणास्थि के कोण ( notch ) में कुछ नीचे उसके पत्रकों ( alae ) से जुड़ी रहती हैं तथा पीछे की ओर घाटिकाओं के स्वरवर्धनकों ( vocal processes ) से जुड़ी होती हैं। उनके ऊपर कूट स्वरतन्त्रियाँ ( false vocal cords ) होती हैं जो स्नायवीय तथा मांस तन्तुओं से युक्त गुहापट्टियाँ ( ventri. cular bands ) हैं जिनके ऊपर श्लेष्मलकला का एक भंज ( fold ) चढ़ा होता है। कूट स्वरतन्त्रियाँ आगे स्वरतन्त्रियों के ऊपर चिपकी रहती हैं और पीछे की ओर स्वरयन्त्र के पाश्र्थों में कोणिका ( cuneiform) कास्थियों में विलीन हो जाती हैं। स्वरतन्त्रियों के बीच के विदर ( fissure ) को तन्त्री द्वार ( rima of the glottis) कहते हैं । इसके भी २ भाग होते हैं जिनमें अग्रभाग स्वरकारी होता है और लम्बा होता है तथा पश्चभाग छोटा एवं श्वसनकारी होता है। स्वरयन्त्र सर्वत्र श्लेष्मलकला रोमावृत या पक्ष्मल ( ciliated ) होती है, परन्तु स्वरतन्त्रियों पर यह बहुत पतली एवं तनी हुई होती है और वहाँ रोम नहीं होते तथा अधिजिह्वा के पश्च भाग For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy