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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७० www.kobatirth.org विकृतिविज्ञान दृष्टि से शरीर की सुरक्षा के लिए प्रथम पंक्ति बना कर रोगों से व्यक्ति की रक्षा करती हैं । लसग्रन्थियों के समूहों एवं श्रृंखलाओं का ज्ञान करने के लिए शारीरशास्त्र के ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक है अब हम आगे व्रणशोथों के द्वारा इन विविध चाहिनियों और लस ग्रन्थियों पर क्या प्रभाव पड़ता है उसे प्रगट करेंगे । I Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धमनियों पर व्रणशोथ का परिणाम हम यहां पर तीव्र औपसर्गिक धमनीपाक (Acute infective Arteritis), बुर्गर व्याधि - ( buerger's disease ), सगण्ड बहुधमनीपाक ( polyarteritis nodosa ), अभिलोपी अन्तःधमनीपाक ( obliterative endarteritis ) का वर्णन कर रहे हैं : P तीव्र औपसर्गिक धमनीपाक का कारण पूयजनक जीवाणुओं द्वारा धमनी प्राचीर का उपसर्ग है। यह उपसर्ग निम्न मार्गों से होता है १. धमनी प्राचीर को रक्तप्रदान करने वाली वाहिनियों द्वारा २. धमनी में प्रवाहित रक्त के द्वारा ३. किसी सपूय अन्तःशल्य के द्वारा ४. धमनी के बाहर की ऊतियों में उपसर्ग रहने पर उपसर्ग के दो परिणाम होते हैं-- एक घनास्त्रोत्कर्ष यदि धमनी का अन्तश्छद विदीर्ण हो जावे, तथा दूसरा वाहिनी - विस्फार ( aneurysm ) यदि धमनी के मध्यचोल में विधि या विमाश हो जावे तो उसके परिणामस्वरूप यह देखा सकता है। महाधमनी तथा अन्य बड़ी धमनियों में तीव्र या जीर्ण व्रणशोथात्मक विक्षत आमवातज उपसर्ग के कारण हो जाया करते हैं । महाधमनी के बाह्यचोल में अस्काफ ग्रन्थियाँ देखी जाती हैं परन्तु अधिकतर धमनीय वाहिनी ( vasavasorum ) के द्वारा लसीकोशाओं की भरमार होती हुई देखी जाती है जो मध्यचोल तक पहुँचती है । इनके कारण वाहिनी - विस्फार नहीं हो पाता। एक बार आमवातज उपसर्ग हो जाने पर गौण उपसर्ग के रूप में मालागोलाणु भी एक तीव्र महाधामनिक शोध के कारण बनते हैं । होता है जिसमें सम्पूर्ण धमनी - प्राचीर में स्थान स्थान पर फट जाता है तथा उसमें से एक आश्चर्यकारक घटना है । इसमें घनास्त्रोत्कर्ष नहीं होता । अन्य धमनियों में औपसर्गिक धमनीपाक तीव्र न होकर अनुतीव्र ( subacute ) व्रणशोथ हो जाता है और आन्तर चोल नई नई वाहिनियाँ निकलने लगती हैं यह एक्सरे या रेडियम ( तेजातु ) का जब किसी स्थान पर प्रयोग किया जाता है तो उसकी किरणें आन्तर चोल के अन्तश्छद को विदीर्ण कर देती हैं जिसके कारण एक अपूय व्रणशोथ धमनी में उत्पन्न हो जाता है और घनात्रोत्कर्ष भी हो जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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