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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय २८८ । । । । पृष्ठ वृक जूटीय १४० -तीव्रनाभ्य ६५ --- नाभ्य जूटिकीय १५० -नाभ्य लक्षण १५३ - -सपूय १५४ -प्रसर और नाभ्य में अन्तर १४१ --जूटिकीय अनु तीव्रावस्था १४४ - केशाल बाह्य प्रकार१४ -केशालान्तःप्रकार १४५ -प्रसर जूटिकीय तीवावस्था १४३ --सपूय १५३, १५४ -फिरङ्गिक ६१९ - यक्ष्म ५६७ -वृक्कमुख १५४,१५५ -सपूय १५३ - पूयरत्तीय २५३५ -मुख पाक १५४, १५६ -विमजि १४५, २४६ -शल्य १५४ -श्वेत बृहत् १४५ वृक्कोस्कर्ष उद् ७७९ -परम ७७९ वृक्कोत्कर्ष सपूय १५४ वृक्कों पर व्रण शोथ __ का परिणाम १३७ वृणशोथ वृक्य १४० वृद्धि सम्प्राप्ति १०७४ वृषणपाक वेदनाएँ १८ वेपथु वैकारिक विच्युति वैदर्भ १०१ व्यंश विकार १०२८ व्यंशियाँ १०२७ व्यूहाण्वीयनाश २३६ व्रण उपदंशज तथा फिरङ्गज (व्यवच्छेदक कोष्ठक) ५८८ अकारादिरोगानुक्रमसूची १०६३ विषय पृष्ठ । विषय पृष्ठ व्रण उपस्थ - पुरुष प्रजननांगों -के स्थान पर परिणाम १६१ -कृन्तक देखो विद्रधि - प्रकार, नैदानिकीय २६ कृन्तक - प्रग्रहण २३ व्रणन २३६ - प्रसार २२ व्रण मृदूपस्थ ५८७ - महास्रोत पर -मेखलाकार परिणाम ९८ -रोपण - मांसधातु का -वस्तुरूपाबंद ८२७ परिणाम ५४ - शोथ - में क्या होता है ? ८ - अनुतीव्रावस्था २५ - रक्त तथा लसवाहि- अभिघव्य २९ नियों पर परिणाम ६८ - अस्थिधातु पर व्रण - लस्य २९ शोथ का परिणाम३५ - लस्य कलाओं का २९ - आमावस्था १६ - वर्गीकरण - उत्पत्ति में रक्त - वातनाडीसंस्थान का कार्य ८ पर परिणाम १७६ - और शाथ में भेद १,२ | - विविध शरीराङ्गों - की प्राचीन कल्पना१६ __ पर प्रभाव ३३ -- के कारण आयुर्वेदीय -- विशेष लक्षण ६ - के कारण क्षेत्रीय - विशुष्क २९ परिवर्तन २१ वृक्कों पर परिणाम१३७ - जल संचय क्यों श्लेष्मल कला के २६ होता है १० सपूय ३० - जालिकान्तश्छदीय - सर्व किण्वी पर ___ संस्थान पर परिणाम७५ प्रभाव १३५ - जीर्ण - स्त्री प्रजननांगों पर। - जीर्णावस्था २५ : परिणाम १६३ - तन्तिमय २७. - हृदय पर परिणाम५७ -- तन्त्विमय २६, २७ । - हेतु ३ - तीवावस्था २४ - सम्यगूढावस्था २८८ - दोष तथा दूष्य १९ । - सामान्य लिंग ५ - दोष सम्बन्ध २ व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया ८ - नासा का व्रणशोथावस्था की - पच्यमानावस्था __आठघ टनाएँ १६ - पक्कावस्था व्रणशोथोत्पत्ति तथा - परिभाषा शारीर कोशाएँ १२ परित्रावी शंख निस्तोद ३६२ - पित्ताशय पर शतपोनक सम्प्राप्ति १०७४ प्रभाव १३३ । शम्बूकावर्त सम्प्राप्ति , । । । । । । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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