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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०६२ विषय पृष्ठ वाहिनी प्राचीर के रोग२६४ १८१ ८४९ ८४५ पादपट्ट हार्बुद विस्फार वाहिन्य परिवर्तन ( यक्ष्मा ) ५१४ वाहिन्यर्बुद ओष्ठ ८५० • और अंग विशेष ८४९ ८४९ - - - परिवर्तन ८४६ ८५० ८५० ८४८ वात ८४८ - शोण ८४५ वाहिन्यर्बुदिका कोशीय८४७ विकृतभाव और उनकी महत्ता १०३९ विकृतिविषमसमवाय ४०६ विक्षत पूर्वकर्कट ६९७ विस ३८२ विद्रधि अभिघातज ३७९ - सम्प्राप्ति १०७३ ११४ • उण्डुकपुच्छीय - उपमहाप्राचीरिक ११५ ७१५ १०२ - - परितुण्डकीय ८३,६४९ ११५ ९९५ ६४९ ५७२ ३७९ --- - लस -- - -- जिह्वास्थ • प्रतीपगामी ----- - परिवृक्क यकृत् वृक्क मुख • कृन्तक - जिह्वा - • परिस्थूलान्त्र • पश्चग्रसनी पश्वस्तनीय - पित्तज - फुफ्फुस ९५ वीजकोष वाहिन्य १६३ - ब्रौडीय ४० १९० मस्तिष्क की सकल, मस्तिष्ककी १८ सूचमश्यामाकसम १८५ www.kobatirth.org विषय विनमन विनाम विकृतिविज्ञान विनिद्रता विभिन्नन विभु विमेदरक्तता विमेदार्बुद - - तन्तु - वाहिन्य - श्लिष् विमेदाभ स्नेह विरसता विरुद्धाशन विरुपोत्कर्ष विलम्बिका विलसन का रोग विल्मीयार्बुद विवर्णता विवादिता वि-विभिन्नन विशिष्ट प्रतीकारक - विशोणता विष अन्तः विषण्णता विषतोत्कर्ष रक्तस्रावी पृष्ठ २१२ ३६८ ३६३ ७०२ ४२४ २४५ ८३४ ८३६ ८३६ ८३६ पदार्थ १०२९ २५८ १०२६ ३६८ केशालय ९२१ विष प्रतिविष संयोग १०३५ विष बहिः विषमज्वर (देखो ज्वरविषम) १०२६ २३८ ३०९ ९५९ ९०३ ९६८ १२५ ८१९ ३०९ ३८३ ६६३ - सम्प्राप्ति - विषमानि विषमाशन रक्तगत परिवर्तन ४८३ १०७३ ९५३ ९५९ विष रोगाणुओं के विविध विषादिता विसंज्ञता विसर्प सम्प्राप्ति १०२५ ३६८ ४३३ १०७३ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय पृष्ठ विसूचिका अजीर्णजन्य ९६६ विसूची दण्डाणुजन्य ९६६ विसूची असक और विलम्बिका ९६५ विसूचीया विसूचिका९६६ - सम्प्राप्ति -- -- विस्फोट विहास www २३६ कणीय क्षारप्रिय ८७४ विह्रास काचरविन्दु १४२ २३८ - ―― - धमनी • दुष्ट २४९ मण्डाम मण्डाभ के परिणाम २५४ प्लीहा का २५१ • महास्रोतस्का २५४ ― जलमय लाल - वालरीय विमेदाभीय - श्लेषाभ - श्लिषीय - स्नैहिक -- - -- - विह्वलता वीलरोग १०७४ यकृत् का २४२ वृक्कों का २४५ • हृदय का स्नैहिक २४३ ३८६ ६३८ 99 वृक्क उत्तर जात यकृत् का २५३ वृक्कों का २५२ ८३३ १७७ २४६ २४७ ८३८ २३८, २४० मांस पेशी का२४४ ― - कणात्मक २५५ ६९७ संकुचित १५१ १५१ 'क्षुद्र रक्त या श्वेत १५१ -पाक १४० - अनुतीत्रावस्था १४२ अन्तःशालियक ६५ • जीर्ण अन्तरालित १५१
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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