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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८२ विकृतिविज्ञान 'विषय ५९१ केत्वातु ८७१ ४९३ पृष्ठ | विषय पृष्ठ | विषय पृष्ठ कुष्ठ की औपसर्गिकता ६४१ कोशा मृत्यु परिणाह- गर्भाशयान्तःपाक - ग्रन्थिकीय ६४३ प्रदेशीय १२१ जीर्ण सपूय ७१ - निश्चेत ६४३ - -प्रसर १२१ गलगण्ड श्लेषाभ-मिश्रितरूप ६४४ - मध्यप्रदेशीय " ग्रन्थकीय ७९३ - यह नाम क्यों - लघुलसी १५ - सम्प्राप्ति १०६५ पड़ा? ६४० कोष्टकद्राक्षासम ७९८ गलत्कुष्ठ देखो महाकुष्ठ -सम्प्राप्ति १०६५ -निचर्माभ ८६१ गलशोफ ६३७ कूट काल्युत्कर्ष कोष्ठाग्नि ३०५ गवीनीपाक १५५ कृष्णता ३६४ कोष्ठिकाएँ बाह्यदैव १७३ गावरौचय ३६३ ५६२ कृष्ण मण्डलपाक क्रौन रोग गुरु गात्रता ३८९, ३९१ (फिरङ्गज) क्लम गेण्डीगेम्ना ग्रन्थक ९३२ क्लुप्तीभाव मल गोलकायाणूत्कर्ष ९२९ केशोद्गमन ७५० मूत्रादिक का ३६३ गोलार्बुद ८४८ कैप्टेनआफडैथ क्वेकैन्स्टेट चिह्न १८७ गौरव ३१०,३९७ केबोटवलय ८९३ ग्रन्थिकर्कट ७१० क्षमता १०२१ ग्रन्थिकर्कट भ्रौण ७५२ कोटरपाक सपूयवायु ८३ -अवाप्त १०२३ कोथ २५९ -के दो प्रकार ६०२ १०२२ ग्रन्थिका पर्यस्थ - अन्तःशाल्यिक २६१ -प्राकृत १०२३ ग्रन्थिपेश्यर्बुद ७९२ - आद्र २६० ४९६ क्षय ग्रन्थियाँ मोरेण्ट - उपसर्गजन्य २६१ - अनुलोम ४९३ बेकर की ४३ ग्रन्थिसङ्कट - जीवाण्विक -प्रतिलोम ८२३ ११५ ४९५ क्षारप्रियता विन्दुकीय ८७४ ग्रन्थिसिराज - नैदानिकीय ६०९ क्षारप्रिय विन्दुकता ८९५ ग्रन्थ्यर्बुद दृष्टि से भेद २६१ ७८३ क्षारप्रिय सिध्मन ८७४ - अन्तःप्रणा- मधुमेहजनित २६२ तारातुप्रतिधारण १४१ लिकीय ७८८ -वाति २६२ क्षुधा - अधिवृक्क बाह्यकीय७८७ - वार्धक्य जन्य २६२ गण्डमाला सम्प्राप्ति १०६५ - अन्य अंगों के ७९६ -शुष्क २५९ गतिस्खलन ३१४ - आमाशयस्थ ७९२ कोशा उपसिरन्ज्य १५ गतिस्थैर्य कूट - अवटुकाग्रन्थिस्थ ७९३ - एकन्यष्टीय १४ गम्मा या गमैटा ५९५ - क्लोमनालस्थ -चषक गर्भाशय के पाक १६८ या श्वासनालस्थ ७९० -नाश गर्भाशयग्रीवापाक १६ तन्तु ८२८ ---पुरुखण्डन्यष्टीय गर्भाशयपाक १६५ तालुस्थ ७९१ (बह्वाकारी) १२ गर्भाशयपेशीपाक - परिप्रणालिकीय ७८८ -प्रचलन २८६ जीर्ण - पुर्वंगकीय ७८४ -प्ररस १५ गर्भाशयसङ्कट बीजग्रन्थीय ७९४ - मृत्यु केन्द्रिय १२१ अन्तरालित ८२२ - - कूटश्ले-मृत्यु खण्डिकीय गर्भाशयसङ्कट प्रसर ८२२ मीय सकोष्ठ ७९५ या प्रादेशिक १२० गर्भाशयान्तःपाक - - लस्यसकोष्ठ ७९४ -मृत्यु नाम्यक्षेत्रिय १२० उष्णवातीय १६५ - भौण ७९४ । ७९५ २३३ । । । । । । ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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