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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०३६ विकृतिविज्ञान आधुनिक वाद ऊपर जो तीन वाद दिये गये हैं उन तीनों के समझौते को आधुनिकवाद नाम दिया जा सकता है । इस वाद में तीनों वादों का समन्वय होता है । आधुनिक रोगापहरण सामर्थ्य की समस्याएँ यह प्रकट करती हैं कि उनका स्वरूप रासायनिक एवं भौतिक है इसलिए व्यूहाणु की रचना तथा श्लेषाभीय घटना का सम्बन्ध प्रतिद्रव्योत्पत्ति तथा प्रतिजन - प्रतिद्रव्य-संयोग दोनों के साथ रहता है । अहर्दिक का मत जिसमें वह वैशिष्ट्य पर अधिक जोर देता है मौलिकतया ठीक ज्ञात होता है । परन्तु उसने जो ३ गण बनाए हैं उनकी आवश्यकता इसलिए नहीं रहती कि स्पष्ट दृग्गोचर होनेवाली प्रसमूहन और निस्सादन क्रिया अदृष्ट विष प्रतिविष संयोग या संपूरक प्रतिबन्धन सब प्रतिक्रियावान् पदार्थों की भौतिक अवस्था के द्वारा अनुशासित होते हैं । प्रतिजन और प्रतिद्रव्यों के सब संयोग एक से होते हैं। आधुनिक दृष्टि से बोर्डेबाद को इस प्रकार लिया जा सकता है कि प्रतिजन - प्रतिद्रव्य संयोग विविध अनुपातों में हुआ करता है । अहनियस और मदसेन का वाद इस दृष्टि से ग्राह्य है कि प्रतिजन - प्रतिद्रव्य संयोग Taran सम्भव है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जितने भी रासायनिक प्रमाण हैं वे बतलाते हैं कि प्रतिद्रव्य लसीकावर्तुलियाँ ( serum globulins ) हैं जिनके विशिष्ट रासायनिक समूह होते हैं जो अपने-अपने प्रतिजनों के साथ मिलने की सामर्थ्य रखते हैं । प्रतिजन - प्रतिद्रव्य संयोगों में अधिचूषण घटना भी महत्व का भाग लेती है । एक व्यूहाणु को दूसरा व्यूहाणु पकड़ कर भिन्न-भिन्न संयोगों की रचना किया करता है यह कार्य अधिचूषण घटना के आधार पर होता है । अधिक काल तक विष प्रतिविष का मिलन उन्हें दृढ़ता से संयुक्त कर देता है । उसका कुछ तो कारण यह है कि उनमें सामूहिक क्रिया ( mass action ) होती है और कुछ यह कि जब अन्तः व्यूहाणुशक्ति द्वारा प्रारम्भिक सम्मिलन हो जाता है। तो अन्तः व्यूहाणुशक्ति अपनी क्रिया करके संयोग में दृढ़ता ला देती है । जानपदिक प्रतीकारिता ( Herd Immunity ) अनेक संपरीक्षण और कितने ही सांख्यिकीय अध्ययन यह जानने के लिए हुए हैं कि जनपदोद्ध्वंस ( epidemic ) का क्या कारण है और उसके बन्द होने में भी कौन हेतु देखे जाते हैं । यह सम्भव है कि कोई देश या प्रदेश कुछ यन्त्रवत् कारणों के होने मात्र से ही किसी रोग विशेष के प्रति प्रतीकारी हो इसका सर्वसाधारण उदाहरण 'इङ्गलैण्ड है जहाँ प्लेग और विसूचिका नहीं होते । उसका कारण यह कदापि नहीं कि वहाँ के लोगों में इनके प्रति जन्मजात प्रतीकारिता पाई जाती है । अपि तु उसका प्रधान कारण है बन्दरगाहों में स्वच्छता, जल की पवित्रता तथा मनुष्य या जनसंख्या को रोगाक्रान्त जीवजन्तु से न मिलने देने का स्वास्थ्य विभाग का सफल प्रयत्न । इसी को यन्त्रवत् ( mechanical ) कारण कहा जाता है। किसी रोग का उपसर्ग 1 For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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