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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोगापहरण सामर्थ्य १०३५ की अहर्लिक द्वारा प्रयुक्त विधि यह थी कि एक एकक प्रतिविष के साथ विष की विभिन्न मात्राएँ मिला दी जावें तथा वण्टमूष में वेध द्वारा उस मात्रा का ज्ञान किया जावे जिसके कारण उस पर कोई हानिकर प्रभाव न पड़ सके। ऐसे मिश्र (मिक्श्चर) में विष की जो मात्रा एक एकक प्रतिविष द्वारा क्लीब कर दी गई वह विष की मा० (शून्य मात्रा) मान ली गई पर मा० का ठीक ठीक निर्धारण करना असम्भव था इस कारण उसने एक अन्य प्रमापन विधि निकाली जिसे विष की मा० मात्रा कहा गया। मा० + न्यूनतम विप की वह मात्रा है जिसे एक एकक प्रतिविष ‘से मिलाकर सूचीवेध द्वारा प्रवेश करने पर एक २५० धान्यभार का वण्टमूष ४ दिन में मर जाता है। इस परिभाषा के अनुसार मा + मात्रा - मा० मात्रा१ न्यू० मा० मा० होगी। परन्तु व्यवहार में यह गलत निकला। न्यू. मा. मा. १ से सदैव अधिक आर्द्र और कभी कभी तो यह मात्रा ५० गुनी तक हो गई। इस घटना को अहलिकीय घटना ( Ehrlich's phenomenon) कहा जाता है। आजकल इस घटना का प्रयोग न होकर जैविक प्रमापन कार्य सांख्यिकीय आधार (statistical basis ) पर किया जाता है। अपनी घटना को अपने मत से स्पष्ट करने के लिए प्रतिजनप्रतिविष संयोग के सम्बन्ध में अहर्लिक ने जबर्दस्ती प्रतिविष के प्रति बन्धुस्वभाव रखने वाले संजटिल विषाभों की कल्पना कर ली थी। इन विषाभों की उपस्थिति आज स्वीकार नहीं की जाती। घटना का अर्थ बोवाद या अर्हीनियसवाद द्वारा किया जाता है। संपरीक्षा यह सिद्ध करती है कि परीक्षणकाल में विष और प्रतिविष दोनों को एक साथ मिलाने से विष को प्रतिविष नष्ट नहीं करता। दोनों का संयोग सरलता से उत्क्राम्य ( reversible) हो सकता है यदि मिश्र को मन्द ( dilute) कर दिया जाय, गर्म कर दिया जाय, जमा दिया जाय या उन पर तनु अम्लों का प्रयोग किया जाय । इसी कारण विष प्रतिविष मिश्रण जमा देने पर अत्यन्त विषाक्त हो जाता है । एक तथ्य यह भी स्मरणीय है कि विष और प्रतिविष दोनों का संयोग और दृढ हो जा सकता है यदि दोनों का सम्मिलन समय पर्याप्त बढ़ा दिया जावे। पर अत्यधिक समय होने पर दोनों का वियवन ( dissociation ) होने लगता है। ये सभी तथ्य अहर्लिकवाद के विरुद्ध हैं तथा प्रतिक्रिया मन्द और उत्क्राम्य है जब कि अहलिंक उसे तीक्ष्ण और अनुत्क्राम्य मानता आया है। एक और तथ्य है जो अहर्लिक तथा अहींनियस एवं मदसेन के वादों को विचूर्ण करता है। उसे डैनिश घटना ( Danysz phenomenon ) कहते हैं । डैनिश ने पता लगाया था कि यदि निश्चित मात्रा में विष के साथ प्रतिविष की निश्चित मात्रा मिला दी जावे तो विष के क्लीबन की मात्रा प्रतिविष को मिश्रित करने के ढंग पर निर्भर होगी। यदि प्रतिविष एकदम बहुत सा मिला दिया जावेगा तो विष की अधिक मात्रा क्लीब हा जावेगी पर यदि थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ठहर-ठहर कर प्रतिविष को विष में मिलाया जावेगा तो विष का क्लीबन बहुत कम होगा। इस घटना को बोर्डवाद द्वारा समझाया जा सकता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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