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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव - हृत्पेशी में अस्काफ ग्रन्थियां भीतर तक प्रवेश कर जाती हैं। आमवातोपसर्ग की तीव्रावस्था में हृत्पेशी में पर्याप्त सूजन और वेदना रहती है जिसके कारण पेशीसूत्रों के आकुञ्चन-प्रसार में बाधा पड़ती और हृद्ग्रह की आशंका बढ़ जाती है, आगे चलकर इन ग्रन्थियों से आवेष्टित पेशी भाग में तन्तूत्कर्ष होने लगता है। जिसके कारण पेशी पर्याप्त दुर्बल होजाती है और उसकी कार्यकर शक्ति कम होजाती है। यह तन्तूत्कर्ष अत्यधिक प्रबल नहीं होता इस कारण शक्तहृत्पेशी भाग के बाहर की ओर यह अग्रतोवृद्ध ( bulged) हो जाता है। यह तन्तूत्कर्ष ही जीर्ण अन्तरालीय हृत्पेशीपाक (chronicinterstitial Myocarditis) या प्रसर हृत्पेशीय तन्तूत्कर्ष (diffuse myocardial fibrosis) का कारण होता है। जब हिज के पूल ( bundle of His ) में विक्षत हो जाता है तो हृत्तरङ्ग के आवागमन में बाधा पड़ने की तथा हृद्ग्रह ( heart block ) होने की सम्भावना हो जाती है। परिहृत् में अस्काफ ग्रन्थि उपान्तश्छदीय संयोजक ऊति में बनती है इसके कारण परिहृत्पाक होता है। इस रोग की प्रवृत्ति उत्स्यन्दनशील होने के कारण परिहत् में उत्स्यन्द भी एकत्र हो जाता है। आमवातजन्य उत्स्यन्द मात्रा में अल्प तथा लस्य होता है जो सपूय कदापि नहीं हो पाता। तन्त्वि के संचय के कारण सतन्त्वि परिहृत्पाक प्रायशः देखा जाता है जिसमें शून्य और घर्षण शब्द दोनों मिलते हैं। . आमवातज हृत्पाक के कारण होने वाली विकृतियों का वर्णन करते समय यह बताना भी आवश्यक है कि आधुनिक दृष्टि से इस रोग का कर्ता कौन है ? पहले से शोणहरित मालागोलाणु (streptococcus viridans) को इसका जनक माना गया है परन्तु जब तुण्डिकापाक होता है तो उसके बाद आमवातज्वर के लक्षण बढ़ते हुए देखे गये हैं । तुण्डिकापाक का कारण पूयजनमालागोलाणु (streptococcus pyogen) होता है। इस दृष्टि से आमवात का कर्ता जीव कुछ पूयजन मालागोलाणु को मानते हैं। पर यतः ये दोनों ही जीव अस्काफ की ग्रन्थियों में मिलते नहीं अतः तीसरा मत यह हो गया है कि यह विषाणुजनित रोग है पर उसका भी कोई प्रत्यक्ष प्रमाण मिला नहीं। एक अन्य मत जो इस समय चल रहा है वह यह है कि पूयजनमालागोलाणु की उपस्थिति से एक कफरतीय प्रतिक्रिया ( allergic reaction ) के रूप में यह विकार होता है। यह प्रतिक्रिया इस रोग के कारक विशिष्ट विषाणु की क्रिया को उत्तेजना देकर रोग का दौरा उत्पन्न करने में समर्थ होती है। कुछ भी हो आमवातज हृत्पाक के निम्न परिणाम देखे जाते हैं: १. द्विपत्रकीय सन्निरोधोत्कर्ष जिसके साथ पुरस्-हृत्कुंचन मर्मरध्वनि ( presystolio murmur ) मिलती है, ____२. महाधमनी कपाटों की अकार्यकरता जिसके कारण महाधामनिक प्रतिप्रवाहण तथा साथ ही हृत्स्फारजनित मर्मरध्वनि ( diastolic murmur ) मिलती है, ___३. द्विपक्षकीय अकार्यकरता ( mitral incompetence ) तथा महाधामनिक सन्निरोधोत्कर्ष ये दोनों बहुत कम देखे जाते हैं, ६ वि० For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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