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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्नि वैकारिकी ६७३ तथादग्धगुडाभासं सपिच्छापरिकर्तिकम्। शुष्कास्यो भ्रष्टपायुश्च हृष्टरोमा विनिष्टनन् ।। (अष्टाङ्गहृदय) ४. अरुणं फेनिलं रूक्षमल्पमल्पं मुहुर्मुहुः। शकृदामं सरुक्शब्दं मारुतेनातिसार्यते ॥ (माधवकर ) ५. अरुणं फेनिलं रूक्षमल्पमल्पं मुहुर्मुहुः । सामं सशूल शब्दश्च सारो वातात्प्रवर्तते ॥ (सिद्धसंग्रह) ६. सफेनिलं पिच्छलमेव रूक्षमल्पं शकृदामसशब्दशूलम् । कृष्णं भवेद्गात्रविचेष्टनञ्च वातातिसारे प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ।। ( हारीतसंहिता) ७. रूक्षं फेनिलमल्पमल्पमरुणं सामं सशब्दं सरुक् । विट्श्यावं कठिनं विबद्धमसकृद्वातातिसारे भवेत् ।। (वैद्यविनोद) णं वातात............................ (अञ्जननिदान् ) ९. शूलान्वितोमलमपानरुजाप्रगाढं, यस्तोयफेनसहितं सरुजं सशब्दम् । रूक्षं सृजत्यतिमुहुर्मुहुरल्पमल्पं, वातातिसार इति तं मुनयो वदन्ति ॥(कल्याणकारक) उपर्युक्त उद्धरणों का विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वातिक अतीसार के सम्बन्ध में निम्नाङ्कित लक्षणों को अधिकांश स्वीकार करते हैं: १. मल रूक्ष होता है और उसमें स्नेहांश नहीं पाया जाता। २. मल थोड़ा थोड़ा करके बार बार आता है। ३. मल में झाग होते हैं। ४. मल त्यागते समय पेट में परिकर्तनवत् पीड़ा होती है। ५. मलत्याग की क्रिया सशब्द होती है और साथ में शूल भी होता है। ६. कुछ लोग मल को देखकर उसका वर्ण अरुण निश्चित कर देते हैं कुछ उसे श्याव और कुछ कृष्ण भी कहते हैं। अष्टाङ्गसंग्रहकार उसे जले गुड़ की आभावाला मानता है। ७. मल ढीला ढीला, गँठीला, पानीयुक्त, प्रसरणशील, द्रव, आमगन्धि आदि रूप का बताया जाता है। ८. मलत्याग के समय आँतों में कुंथन या कूजन और गुडगुड शब्द होता है, शरीर पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, मुख शुष्क हो जाता है। ९. मलत्याग के बाद कटि, ऊरु, त्रिक, पार्श्व, पृष्ठ, जानु आदि अंगों में वेदनाएँ और गात्र का विचेष्टा करना देखा जाता है। १०. टट्टी करते करते कइयों की काँच बाहर आ जाती है। यह स्मरण रखने योग्य है कि चरक ने विजल से लेकर विबद्ध तक वातोत्पन्न आमातिसार का वर्णन किया है; पक्क के द्वारा वातिक पक्वातिसार का विचार किया है। इस पक्कवातातिसार को कुछ अनुग्रथित अतीसार भी कहते हैं यह प्रकट किया गया है। शेष आचार्यों ने इस प्रकार वर्णन नहीं किया । (२) पित्तज अतीसार पित्तज अतीसार के सम्बन्ध में निम्न लक्षण साहित्य उपलब्ध होता है: १. तस्यरूपाणि-हारिद्रं हरितं नीलं रक्तपित्तोपगतमतिदुर्गन्धमतिसार्यते पुरीषं तृष्णादाहस्वेदमूर्छाशूलबध्नसन्तापपाकपरीत इति पित्तातिसारः । (चरक ) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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