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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुधिर वैकारिकी पहले नीलोहा के निम्न ४ विभाग किए जाते थे १. साधारण नीलोहा ( purpura simplex ) – यह एक सौम्य प्रकार का होने वाला ( प्रत्यावर्ती - recurrent ) रोग है । ६१७ २. रक्तस्रावी नीलोहा ( purpura haemorrhagica ) – यह गम्भीर स्वरूप का होता है और इसके साथ बिम्बाण्वपकर्ष अवश्यमेव पाया जाता है । इसे भौमिक प्रशीताद ( land scurvy ) भी कहते हैं । ३. आमवातिक नीलोहा ( purpura rheumatica ) – यद्यपि आमवात से इसका कोई सम्बन्ध नहीं हुआ करता पर यतः केशालों से रक्तस्राव सन्धियों में हुआ करता है अतः वहाँ शूल पर्याप्त मिलता है इस कारण इसका यह नाम डाला गया है । सन्धियों में शूल के साथ ज्वर भी मिल जाया करता है । ४. • हैनकीय नीलोहा ( Henoch's purpura ) – यह शिशुओं का रोग है । आन्त्र प्राचीर में रक्तस्त्राव होता है जिसके साथ साथ आन्त्र में शोथ, मरोड़ तथा उदरशूल भी होता है । मल सरक्त आता है । ( देखो पृष्ठ ९२१ ) कारण दृष्टि से इसके २ विभाग और भी किए जाते हैं - १. औपसर्गिक विभाग ( infective type ) २. वैषिक विभाग ( toxic type ) । औपसर्गिक विभाग - इसमें - १. तीव्र विशिष्ट ज्वरों के साथ नीलोहा उत्पन्न होता है । इनमें रक्तस्रावी रोमान्तिका ( haemorrhagic form of measles ) लोहितज्वर आदि रहते हैं जो सदैव मारक रूप ही उपस्थित करते हैं । २. तद्रिकज्वर ( typhus ), शीतला, मस्तिष्कसुषुम्नाज्वर, ज्वरिकामला अति कुन्तलाणूकर्ष ( leptospirochaetosis icter haemorrhagica ), ३. रोगाणुरक्तता ( septicaemia ) विशेष करके शोणांशिक मालागोलाण्विक रोगाणुरक्तता इसी प्रकार अन्य जीवाणु भी कार्य कर सकते हैं । विषमज्वर का पराश्रयी जीवाणु तथा श्यामाकसम यक्ष्मा का यमदण्डाणु । ४. मुख्यतः सूक्ष्म अन्तःशल्यों के कारण तथा अंशतः उपसर्ग के कारण मारात्मक हृदन्तश्छदपाक में नीलोहा देखा जाता है । वैषिक विभाग - इसमें १. रोगाण्विक विषियां ( bacterial toxins ) जिसके साथ दूषकनाभि ( septic focus ) उपस्थित हो विशेषकर जब रोगाणु शोणांशिक हो । २. शरीर में वातरक्त (gout ), पाण्डु ( jaundice ), मधुमेह ( diabetes. mellitus ), जीर्ण वृक्कपाक में अन्तर्जनित विषियों ( endogenous toxins ) की उपस्थिति भी नीलोहोत्पादक हो सकती है । For Private and Personal Use Only ३. प्रतिविषलसिका (antitoxic sera ) तथा सर्पविष ( snake venom ) आदि बाह्यविष भी नीलोहा उत्पन्न करते हैं ।
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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