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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुधिर वैकारिकी ६१५ १२. रक्त में कुछ मज्जकायाणु ( myelocytes ) भी मिलते हैं। रक्तस्राव के २-३ दिन बाद साधारणतया तीव्र रक्तस्राव होने के कितनी देर बाद रक्तचित्र का परीक्षण किया जा रहा है यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक तीव्र और द्रुत रक्तस्त्राव के तुरत बाद रक्तचित्र में कोई भी परिवर्तन न मिलना पूर्णतया सम्भव है। क्योंकि रक्त का टोटल आयतन घट जाने पर भी रक्तरस और लालकण उसी अनुपात में नष्ट हुए हैं जिनमें उनका संकेन्द्रण ( concentration ) साधारणतया रहता रहा है । और अभी तक कोई उपशयात्मक ( reparative ) परिवर्तन नहीं हो पाते। केवल बिम्बाणुओं की संख्यावृद्धि हो जाया करती है और आतञ्चकाल (clotting period) घट सकता है। ___ रक्तस्राव के २-३ दिन पश्चात् सबसे पहले रक्त में उसके द्रव या तरल भाग की वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप रक्त मन्द ( dilute ) हो जाता अर्थात् पतला पड़ जाता है जिसके कारण-१. कोशागणन ( cell count ) तथा २. रंगदेशना ( colour index ) ये दोनों ही घट जाते हैं। ___ आगे चल कर कोशाओं की पूर्ति होती है। परन्तु नये कोशाओं की शोणवर्तुलि की पूर्ति पूरी-पूरी नहीं हो पाने से नवकोशाओं की शोणवर्तुलि मात्रा कम हो जाती है । ___ शोणवर्तुलि की कमी के कारण लालकों को संख्या बढ़ने लगती है, रंगदेशना घट जाती है तथा हरिदुत्कर्षीय ( chlorotic ) हो जाती है। ___थोड़े से ऋजुरुह उत्पन्न हो जाते हैं और रक्तमज्जा की सक्रियता के परिणामस्वरूप अनेक बहुन्यष्टिकोशाओं की उत्पत्ति हो जाती है थोड़े से मज कायाणु भी देखने को मिला करते हैं। धीरे-धीरे शोणवर्तुलि की भी पूर्ति होने लगती है। जबतक यह पूर्ति नहीं हो पाती तब तक शोणवर्तुलि की मात्रा कम रहने के कारण पर्याप्त काल तक रंगदेशना में भी अवसाद पाया जाया करता है। जीर्ण रक्तस्राव में आमाशयिक या ग्रहणीक व्रणों द्वारा निर्मित विक्षतों से मारात्मक अर्बुदों से या फौफुसिक यक्ष्माजन्य फुफ्फुसीय गह्वरों या व्रणों से निरन्तर और काल से चलने वाले रक्तस्त्राव में रक्तकणों में शोणवर्तुलि की मात्रा बहुत अधिक घट जाती है। इसके कारण-१. रंगदेशना ०.५ के नीचे तक चली जाती हुई देखी जाती है । २. रक्त के श्वेत कणों की संख्या घट जाती है तथा सितकोशापकर्ष ( leucopenia ) इस रोग में नियमतः पाया जाता है, यदि रक्तस्राव को रोकने का यथोचित प्रबन्ध न हुआ तो। ३. मज्जा का उत्स्रावण ( exhaustion ) हो सकता है तथा कोशाओं का पुनर्जनन बिल्कुल बन्द भी हो सकता है। ऐसा लगता है मानो निरन्तर होने वाले रक्तस्त्राव के कारण अस्थिमज्जा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया दब जाती है जिससे नये For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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