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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __ अभय-रत्नसार । ७४६ का त्याग करना। कच्ची हल्दी, अदरख, लसुन वगैरह बीमार पड़ने पर भी न खाओ। फागुनकी चोमासा शरू होनेके पहले ही आठ महोने के लिये साफ़ बनिमें तेल भरवा रखो। असाढ़से शुरू होनेवाले चौमासेमें खांड़, काजू, बदाम, पिस्ता, दाख आदि. को काममें लाना बन्द कर दो। सूखे आँचार आदि असाढ़के चौमासके पहले ही खा कर ख़तम कर दो। हरे बाँस, बेल, केर नागर वेलके पान और मैदेसे परहेज करो। आटा या सोजी बाजारसे नहीं मंगवाओ। घरमें पीस लेने में मिहनत तो पड़ेगी; पर अनेक जीवोंका आशीर्वाद मिलेगा। पानीको बहुत ख़र्च न किया करो और बिना छाने काममें न लाओ। ८-पर्वके दिनोंमें दलना-मलना, :पीसना, तोड़ना, धोना. मांजना, सिर गूथना, मठा निकालना, गोबरके कण्डे पाथना आदि मना है । छहों अट्ठाइयोंके दिन भी ये सब काम करना मना है। ___-मिथ्यात्व-लौकिक पर्व—आसाढ़ की पूनो, रक्षाबन्धन, नवरात्र, होली, संक्रान्त, गणेशचौथ, नागपञ्चमी, राँधन छठ, शीतलासप्तमी ( जिसमें बासी चीजें खायी जाती हैं ) गोपाष्टमी, नोलीनवमी, अहवादशमी, भोम-एकादशी, धनतेरस, अनन्तचौदस सोमप्रदोष, सोमवती अमावस, बुधाष्टमी, दसहरा, मुहर्रम, बकरीद आदि पर्व मिथ्यात्वके हेतु और अनर्थकारी हैं, अतएव इन्हें त्याग देना। १०-रोने-कूटनेको चाल, दसे, ग्यारहवें, बारहवे, तेरहवेका सतक मानना, गृहप्रवेश, अधरणी ( पहले पहल गर्भ रहनेका For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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