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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४८ भक्ष्याभक्ष्य-विचार। ६.-यदि तुम्हारे पास धन है तो उसे पूर्व पुण्योंका उदय समझो और जो काम नौकरों द्वारा करवाना हो, उसे ठीक समझ बूझ कर करवाना चाहिये । कारण आप जैसे जयणा पूर्वक काम करेंगे, वैसे वह नहीं कर सकेगा। जैसे आप साग न बनावें, तो नौकर सागके साथ साथ न जाने कितने जीवोंको मार डालेगा। पानीमें भी गोलभाल कर सकता है। अतएव जो काम अपनेसे न हो सके, उसोके लिये नौकरोंको पुकारे यही हमारे लिये उचित है। ७-चार 'महाविगई'का अवश्य ही त्याग करना। बरफ, मलाईकी बरफ आदिका व्यवहार नहीं करना । वच्चोंको अफीम न खिलाना । कच्ची मिट्टो या नमक न खाना । आलस्य छोड़ कर नमकको अचित्त बना लेना। रातको भोजन नहीं करना । तिलों और पोस्त के दानोंका त्याग करना ; जहाँ तक हो सके चटनी, आँचार वगैरहका चटोरपन छोड़ना और दूसरोंसे भी छुड़वाना; विदल वस्तुओं का ख़ास ख़याल रखना तुम्हारा हो काम है। यदि पुरुष विरतिवान न हों, तो तुम उनको वैसा बना सकती हो। बैंगन बगैरहका भुर्ता बना कर नहीं खाना खिलाना। झड़बेरी या खट्टे जामुन न खाना। गाली, निन्दा आदि बुरी बाते न करना धर्मके कामोंमें लगी रहना । जिन चीजोंका रस बिगड़ गया हो, या जो बासी हो गयी हो, उन्हें कभी काममें न लाना। आटा, मुरब्बा, आँवार, सेव, बड़ी, पापड़ आदिके विषय में जो कुछ पहले लिखा गया है, उस पर पूरा ध्यान देना । अनन्तकाय For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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