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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२४ भक्ष्याभक्ष्य विचार । भोजनका निषेध किया है, इसलिये उनकी आज्ञाका अवश्य ही पालन करना चाहिये । हमलोग पूजाके समय सबसे पहले माथेमें जो तिलक लगाते हैं, उसका आशय यही है, कि हम प्रतिज्ञा करते हैं, कि हे भगवन् ! हम आपकी आज्ञाएँ अपने शिर पर चढ़ाते हैं। इसलिये नित्य ही भगवानकी आज्ञाका पालन करना तथा इस प्रतिज्ञाके चिह्न-स्वरूप तिलक लगाना चाहिये। इन अभक्ष्य पदार्थों का वर्जन करके हम असंख्य जीवोंको अभयदान देनेका पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। शास्त्रोंमें लिखा है, कि एक जीवको अभय देना सुवर्णके सुमेरुपर्वतका दान करनेके बराबर है। फिर जो असंख्य जीवोंको अभयदान करते हैं, उनके पुण्यका क्या ठिकाना है ? इसलिये हे चतुर और सुज्ञ बन्धुओ! आप लोग भगवानके वचनोंका आदर कीजिये ; क्योंकि यही मोक्षका द्वार है । जो यह कहते हैं, कि खाना, पीना, मौज करना ही जीवनका मूल-मन्त्र है, वे पापी और मूर्ख हैं। जो लोग शरीरको दुःखोंकी आँचसे तपाकर महाफलकी प्राप्ति करनेमें लग जाते हैं, वेही शीघ्र मोक्षके अधिकारी होते हैं । विशेष सूचनाएँ । बाईस अभक्ष्योंके सिवा और भी कितनी ही चीज अभक्ष्य है। हम नीचे उनका हाल और कब कौन चीज़ भक्ष्य या अभक्ष्य है, उसका वर्णन लिखते हैं। १-फागुन सुदी १५ से कातिक सुदी १५ तक दोनों तरहके खजूर, दोनों तरहके तिल, पोस्ता, खारेक, काजू वगेरह मेवे तथा सब तरहकी पत्तोंकी भाजी अभक्ष्य है। फागुनका चौमासा For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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