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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार। ६६५ चउदह पूरब-तपकी विधि । तपस्वोको यदि यह तपस्या करनी हो तो वह पहले उत्तम दिन देखकर गुरुसे उक्त तपस्या ग्रहण करे। इस तपस्यामें चउदह उपवास करने पड़ते हैं, वह समयानुसार क्रमशः करे। जिस दिन जिस पूर्वकी तपस्या हो, उस दिन उसी पूक्के नामकी वीस माला गिने । स्तवनमें १४ पूर्व के नाम और उनको विधि दो गयी है, उसके अनुसार विवेकी पुरुष गुरुसे समझ कर सारी क्रिया करे। इस तपस्याके स्तवनको भाव-पूर्वक श्रवण करे या स्वयं पढ़े। यह तपस्या करनेसे ज्ञानावरणीय आदि कर्मोका क्षयोपशम हो कर उत्तम ज्ञान और लक्ष्मीकी वृद्धि होती है। ॥ अथ तिलक तपस्याका स्तवन ।। दुहा ॥ शासन देवी शारदा, वाणी सुधारस वेल । बालक हित भणी बगसियै, सुबुद्धि सुरंगी रेल ॥१॥ नवम अंग जिन पूजतां, मन लहि शुभ परिणाम ॥ तप तिलके फल पामिये, दवदंती गुणधाम ॥२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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