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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधि-संग्रह। घर सारू धन खरचने, नरभव लाहो लिजे रे ॥ वा०॥७॥ पूठा परत विटांगणा, पूरब नाम प्रमाणो रे । नवकरवाली कोथली, लेखण ठवणी जाणो रे ॥ वा०॥८॥ देहरै देव जुहारने, आरती मंगल कीजै रे। स्नात्रपूजा बलि साचवी, तत्व सुधारस पीज रे ॥ वा० ॥६॥ इण पर तप आराधतां, दुरगति कारण छेदै रे । चवदह रज्ज शिरोमणी, जीव अक्षयगति वेदे रे ॥वा. ॥१०॥ तप आराधन विधि भणी, आगम वचने जोइ रे। भवियण पिण तुमे आदरो, ज्यु भव-भ्रमण न होई रे । वा०॥ ११ ॥ कलश इम सयल सुखकर गच्छ खरतर तपै रवि जिम क्रांत ए, सौभाग्यसूरि मुणिद इण पर कह्यो पूर्व वृतंत ए । सम्बत अठार वरस हिन्न नयर श्रीवालूचरै, ए स्तवन भण श्रवण सणतां सयल मनवंछित फलै ॥ १२ ॥ इति चतुईश-पूर्व-तप स्तवनं सम्पूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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