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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६० विधि-संग्रह | पूरा कर लेनेपर शक्तिके अनुसार उद्यापन- उजमला भी करे । इस तपस्या के प्रभाव से बुद्धि निर्भय हो कर निरन्तर अनन्द रहता है । MAA~www ॥ अथ चतुर्दश पूर्व-तन स्तवन ॥ ढाल || बे कर जोडी ताम-ए देशी ॥ जिनवर श्री वद्धमान, चरम तीर्थंकर, प्रह ऊठी प्रणमं मुदा । श्रुतधर श्रीगणधार, सूरि शिरोमणी, नमतां नव निधि संपदा ए ॥ १ ॥ चवदे पूरब नाम, सूत्र जूजूवा, वीरजिनंदे भाषिया ए । ते हिव सुगुरु पसाय, वरणविपुं इहां, आगम में जिम उपदिस्या ए ॥ २ ॥ पहिला पूर्वउत्पाद १, दूजो ग्रायणी २, वीर्यवाद ३ तीजा नमूं ए ॥ अस्ति नास्तिप्रवाद ४, सत्ता जाणियै, नारग रयण पंचम ५ गिगुं ए ॥ ३ ॥ छट्टो सत्यप्रवाद ६, सत्तम आतम ७, कर्मप्रवाद अम गिो ए ८ ॥ प्रत्याख्यानप्रवाद ६, नामे नवम, विद्याप्र इग्यारम नाम वाद दशमो को ए १० ॥ ४ ॥ कल्याण ११, प्राणायु बारमो १२, क्रिया विशाल For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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