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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय-रत्तसार। ६५६ धार। तान २ इक २ मिली रे, वारू आठ विचार ॥ च० ॥ २२ ॥ प्रश्नव्याकरणे सही रे, बाकी लवधां वीश ! सांभलतां सुख ऊपजै रे, दोलत हुवै निशदीस ॥ च० ॥२३॥ ॥ कलश ॥ संवत सत्तरैसे छवीसे मेरुतेरस दिन भलै, श्रीनगरसुखकर लूणकरणसर आदिजिन सुपसाउलै । वाचनाचारज सुगुरु सानिध विजय हरख विलासए, श्रीधर्मवर्द्धन स्तवन भणतां प्रगट ज्ञान प्रकास ए॥२४॥ इति २८ लब्धि स्तवनम् ॥ ____ अट्ठाईस लब्धि-तप की विधि । जिस तपस्वोको यह तपस्या करनी हो वह पहले उत्तम दिन और समय देख कर गुरुके समीप जाये । बाद अनुनय-विनय पूर्वक गुरुसे तपस्या उच्चरे।इस तपस्याके २८ अट्ठाइस उपवास करने पड़ते हैं, वह समयानुसार क्रमशः करे। जिस दिन जिस लब्धिका उपवास हो, उसके नामको गुणना-माला गिने । अगर शक्ति हो तो देववन्दनादिक धार्मिक क्रियायें करे। और तपस्या For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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