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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३६ विधि-संग्रह। शक्ति जो व्रत हो सके वही करे, और सावध व्यापारका त्याग करे। तपस्वीको यहाँपर इस बातका खयाल रखना चाहिये कि जन्म-मरणादिकके सूतकके समयकी तपस्यायें ओलीकी संख्यामें नहीं ली जातीं, इसलिये किसी तरहके सुतकके समय कोई तपस्या को हो तो उसे ओलीकी संख्यामें न लेवे, स्त्रियोंके लिये ऋतु कालकी तपस्या भी वर्जनीय है, अतः स्त्रियोंको इस बातका खयाल जरूर रखना चाहिये। ____ तपस्या करते समय ऊपर कहे अनुसार पौषध आदि कोई भी धार्मिक क्रिया करनेका कहा है; पर उनमेंसे कोई भी क्रिया न हो सके तो तपस्याके दिन दो बार प्रतिक्रमण करे, और तीन बार देव-वन्दन क्रिया करे । समस्त तपस्यायें करते समय ब्रम्हचर्यका सेवन रखे। जमीन पर सोवे। तपस्याराधन करके किसी तरहका सावध व्यापार न करे। असत्य-झट न For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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