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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । राधन आरंभ करे । क्रमशः वीस अट्टम-व्रत कर लेनेपर एक ओली पूरी होती है। इस तरह ४०० चार सौ अट्टम व्रत हो जानेसे वीस ओलीकी आराधना पूरी हो जायगी। यदि तपस्वीमें अट्रम व्रतसे आराधन करनेकी शक्ति न होतो छ?-वत करके आरंभ करे । छटसे होनेकी शक्ति न हो तो उपवास द्वारा करे। उपवाससे भी करनेकी शक्ति न हो तो आयंबिल या एकासण द्वारा ही तपाराधन करना आरंभ करे। उस समय शक्ति हो तो अष्टप्रहरी पौषध करे, यदि अष्टप्रहरी पौषध करनेकी शक्ति न हो तो देवसिक-पौषध करे। जहां तक हो सके समस्त पदोंकी अराधना पौषध-पूर्वक करे । यदि सभी पदाराधनमें पौषध न कर सके तो आचार्य, उपाध्याय, थिवर, साधु, चारित्र, गौतम और तीर्थ इन सात पदोंके अराधनके समय अवश्य हो पौषधव्रत करे । फिर भी पौषध करनेकी शक्ति न हो तो देशावगासी-व्रत करे। इसके करनेकी भी शक्ति न हो तो यथा For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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