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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ५६३ निस्तरिया आज । पुत्र तुमारो धणिय हमारो तारण तरण जिहाज ॥सो. ३॥ मात जतन करि राखज्यो एहनें तुम सुत हम आधार । सुरपति भक्ति सहित नन्दीश्वर करे जिन भक्ति उदार ॥ सो० ॥ ४॥ निय निय कप्प गया सहु निर्जर कहता प्रभु गुण सार । दोक्षा केवल ज्ञान कल्याणक इच्छा चित्त मझार ॥सो० ५॥ खरतर गछ जिण आणा रंगी राज सागर उवभाय । ज्ञान धर्म दीपचंद सुपाठक सुगुर तणे सुपसाय ॥ देवचंद निज भक्त गायो जन्म महो च्छव छंद । बोध बीज अंकुरो उलस्यो संघ सकल आणंद ॥ सो०॥६॥ इति ॥ राग वेलावल ॥इम पूजा भगतें करो, आतम हित काज । तजिय विभव निज भावना, रमतां शिव राज ॥ इमः ॥१॥ काल अनंते जे हुआ, होस्ये जेह। जिणंद संपई श्रीमंधर प्रभु, केवल नाण दिणंद ॥ इमः॥२॥ जन्म महोच्छव इण परै, श्रावक रुचिवंत । विरचै जिन प्रतिमा तणों, For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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