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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ सज्झाय-संग्रह | जिनवर अंग नाम । तम निर्मल भाव करंतां, वधतें शुभ परिणामें ॥ अच्युतादिक सूरपति मज्जन, लोकपाल लोकांत । सामानिक इन्द्राणी पमुहा, इम अभिषेक करंत ॥ पू० ॥ गाथा | तब इशारण सुरिंदो, सक्कं पभणेइ करिस सुपसाउ । तुम के महनाहो, खिणमित्तं अम्ह अप्पेह ॥ ता सक्किन्दो पभणइ, साहम्मि वच्छलम्मि बहुलाहो । आरणा एवं तेणं, गिरहइ होउ कत्था भो ॥ ( यह कहकर सभी कलशों के जल से भगवानको स्नान कराना चाहिये ) ढाल || सोहम सुरपति वृषभ रूप करि न्हवण करे प्रभु । करिय विलेपन पुष्पमाल ठवि वर आभरण अभंग ॥ सो० १ ॥ तव सुर वर बहु जय जय रख कर निश्चै धरि आन्द | मोच मारग सारथ पति पाम्यों भांजस्युं हि भव बन्द || सो० ॥ २ ॥ कोड़ बत्तीस सोवन्न उवारी वाजंतै वरनाद । सुरपति संघ अमर श्री प्रभुन जननीनें सुप्रसाद | आणी थापी एम पयंपे म्ह For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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